Rehraas Sahib

रहरासी साहिब(Rehraas sahib)

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 Rehraas Sahib

सलोकु मः १ ॥

Rehraas Sahib

दुखु दारू सुखु रोगु भइआ जा सुखु तामि न होई ॥ 

तूं करता करणा मै नाही जा हउ करी न होई ॥१॥


बलिहारी कुदरति वसिआ ॥ 

तेरा अंतु न जाई लखिआ ॥१॥ रहाउ ॥


जाति महि जोति जोति महि जाता अकल कला भरपूरि रहिआ ॥ 

तूं सचा साहिबु सिफति सुआल्हिउ जिनि कीती सो पारि पइआ ॥ 

कहु नानक करते कीआ बाता जो किछु करणा सु करि रहिआ ॥२॥


सो दरु रागु आसा महला १

ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

सो दरु तेरा केहा सो घरु केहा जितु बहि सरब समाले ॥ 

वाजे तेरे नाद अनेक असंखा केते तेरे वावणहारे ॥ 

केते तेरे राग परी सिउ कहीअहि केते तेरे गावणहारे ॥ 

गावनि तुधनो पवणु पाणी बैसंतरु गावै राजा धरमु दुआरे ॥ 

गावनि तुधनो चितु गुपतु लिखि जाणनि लिखि लिखि धरमु बीचारे ॥ 

गावनि तुधनो ईसरु ब्रहमा देवी सोहनि तेरे सदा सवारे ॥ 

गावनि तुधनो इंद्र इंद्रासणि बैठे देवतिआ दरि नाले ॥ 

गावनि तुधनो सिध समाधी अंदरि गावनि तुधनो साध बीचारे ॥ 

गावनि तुधनो जती सती संतोखी गावनि तुधनो वीर करारे ॥ 

गावनि तुधनो पंडित पड़नि रखीसुर जुगु जुगु वेदा नाले ॥ 

गावनि तुधनो मोहणीआ मनु मोहनि सुरगु मछु पइआले ॥ 

गावनि तुधनो रतन उपाए तेरे अठसठि तीरथ नाले ॥ 

गावनि तुधनो जोध महाबल सूरा गावनि तुधनो खाणी चारे ॥ 

गावनि तुधनो खंड मंडल ब्रहमंडा करि करि रखे तेरे धारे ॥ 

सेई तुधनो गावनि जो तुधु भावनि रते तेरे भगत रसाले ॥ 

होरि केते तुधनो गावनि से मै चिति न आवनि नानकु किआ बीचारे ॥ 

सोई सोई सदा सचु साहिबु साचा साची नाई ॥ 

है भी होसी जाइ न जासी रचना जिनि रचाई ॥ 

रंगी रंगी भाती करि करि जिनसी माइआ जिनि उपाई ॥ 

करि करि देखै कीता आपणा जिउ तिस दी वडिआई ॥ 

जो तिसु भावै सोई करसी फिरि हुकमु न करणा जाई ॥ 

सो पातिसाहु साहा पतिसाहिबु नानक रहणु रजाई ॥१॥


आसा महला १ ॥

सुणि वडा आखै सभु कोइ ॥ 

केवडु वडा डीठा होइ ॥ 

कीमति पाइ न कहिआ जाइ ॥ 

कहणै वाले तेरे रहे समाइ ॥१॥


वडे मेरे साहिबा गहिर ग्मभीरा गुणी गहीरा ॥ 

कोइ न जाणै तेरा केता केवडु चीरा ॥१॥ रहाउ ॥


सभि सुरती मिलि सुरति कमाई ॥ 

सभ कीमति मिलि कीमति पाई ॥ 

गिआनी धिआनी गुर गुरहाई ॥ 

कहणु न जाई तेरी तिलु वडिआई ॥२॥


सभि सत सभि तप सभि चंगिआईआ ॥ 

सिधा पुरखा कीआ वडिआईआ ॥ 

तुधु विणु सिधी किनै न पाईआ ॥ 

करमि मिलै नाही ठाकि रहाईआ ॥३॥


आखण वाला किआ वेचारा ॥ 

सिफती भरे तेरे भंडारा ॥ 

जिसु तू देहि तिसै किआ चारा ॥ 

नानक सचु सवारणहारा ॥४॥२॥


आसा महला १ ॥

आखा जीवा विसरै मरि जाउ ॥ 

आखणि अउखा साचा नाउ ॥ 

साचे नाम की लागै भूख ॥ 

उतु भूखै खाइ चलीअहि दूख ॥१॥


सो किउ विसरै मेरी माइ ॥ 

साचा साहिबु साचै नाइ ॥१॥ रहाउ ॥


साचे नाम की तिलु वडिआई ॥ 

आखि थके कीमति नही पाई ॥ 

जे सभि मिलि कै आखण पाहि ॥ 

वडा न होवै घाटि न जाइ ॥२॥


ना ओहु मरै न होवै सोगु ॥ 

देदा रहै न चूकै भोगु ॥ 

गुणु एहो होरु नाही कोइ ॥ 

ना को होआ ना को होइ ॥३॥


जेवडु आपि तेवड तेरी दाति ॥ 

जिनि दिनु करि कै कीती राति ॥ 

खसमु विसारहि ते कमजाति ॥ 

नानक नावै बाझु सनाति ॥४॥३॥


रागु गूजरी महला ४ ॥

हरि के जन सतिगुर सतपुरखा बिनउ करउ गुर पासि ॥ 

हम कीरे किरम सतिगुर सरणाई करि दइआ नामु परगासि ॥१॥


मेरे मीत गुरदेव मो कउ राम नामु परगासि ॥ 

गुरमति नामु मेरा प्रान सखाई हरि कीरति हमरी रहरासि ॥१॥ रहाउ ॥


हरि जन के वड भाग वडेरे जिन हरि हरि सरधा हरि पिआस ॥ 

हरि हरि नामु मिलै त्रिपतासहि मिलि संगति गुण परगासि ॥२॥


जिन हरि हरि हरि रसु नामु न पाइआ ते भागहीण जम पासि ॥ 

जो सतिगुर सरणि संगति नही आए ध्रिगु जीवे ध्रिगु जीवासि ॥३॥


जिन हरि जन सतिगुर संगति पाई तिन धुरि मसतकि लिखिआ लिखासि ॥ 

धनु धंनु सतसंगति जितु हरि रसु पाइआ मिलि जन नानक नामु परगासि ॥४॥४॥


रागु गूजरी महला ५ ॥

काहे रे मन चितवहि उदमु जा आहरि हरि जीउ परिआ ॥ 

सैल पथर महि जंत उपाए ता का रिजकु आगै करि धरिआ ॥१॥


मेरे माधउ जी सतसंगति मिले सु तरिआ ॥ 

गुर परसादि परम पदु पाइआ सूके कासट हरिआ ॥१॥ रहाउ ॥


जननि पिता लोक सुत बनिता कोइ न किस की धरिआ ॥ 

सिरि सिरि रिजकु स्मबाहे ठाकुरु काहे मन भउ करिआ ॥२॥


ऊडे ऊडि आवै सै कोसा तिसु पाछै बचरे छरिआ ॥ 

तिन कवणु खलावै कवणु चुगावै मन महि सिमरनु करिआ ॥३॥


सभि निधान दस असट सिधान ठाकुर कर तल धरिआ ॥ 

जन नानक बलि बलि सद बलि जाईऐ तेरा अंतु न पारावरिआ ॥४॥५॥


रागु आसा महला ४ सो पुरखु

ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

सो पुरखु निरंजनु हरि पुरखु निरंजनु हरि अगमा अगम अपारा ॥ 

सभि धिआवहि सभि धिआवहि तुधु जी हरि सचे सिरजणहारा ॥ 

सभि जीअ तुमारे जी तूं जीआ का दातारा ॥ 

हरि धिआवहु संतहु जी सभि दूख विसारणहारा ॥ 

हरि आपे ठाकुरु हरि आपे सेवकु जी किआ नानक जंत विचारा ॥१॥


तूं घट घट अंतरि सरब निरंतरि जी हरि एको पुरखु समाणा ॥ 

इकि दाते इकि भेखारी जी सभि तेरे चोज विडाणा ॥ 

तूं आपे दाता आपे भुगता जी हउ तुधु बिनु अवरु न जाणा ॥ 

तूं पारब्रहमु बेअंतु बेअंतु जी तेरे किआ गुण आखि वखाणा ॥ 

जो सेवहि जो सेवहि तुधु जी जनु नानकु तिन कुरबाणा ॥२॥


हरि धिआवहि हरि धिआवहि तुधु जी से जन जुग महि सुखवासी ॥ 

से मुकतु से मुकतु भए जिन हरि धिआइआ जी तिन तूटी जम की फासी ॥ 

जिन निरभउ जिन हरि निरभउ धिआइआ जी तिन का भउ सभु गवासी ॥ 

जिन सेविआ जिन सेविआ मेरा हरि जी ते हरि हरि रूपि समासी ॥ 

से धंनु से धंनु जिन हरि धिआइआ जी जनु नानकु तिन बलि जासी ॥३॥


तेरी भगति तेरी भगति भंडार जी भरे बिअंत बेअंता ॥ 

तेरे भगत तेरे भगत सलाहनि तुधु जी हरि अनिक अनेक अनंता ॥ 

तेरी अनिक तेरी अनिक करहि हरि पूजा जी तपु तापहि जपहि बेअंता ॥ 

तेरे अनेक तेरे अनेक पड़हि बहु सिम्रिति सासत जी करि किरिआ खटु करम करंता ॥ 

से भगत से भगत भले जन नानक जी जो भावहि मेरे हरि भगवंता ॥४॥


तूं आदि पुरखु अपर्मपरु करता जी तुधु जेवडु अवरु न कोई ॥ 

तूं जुगु जुगु एको सदा सदा तूं एको जी तूं निहचलु करता सोई ॥ 

तुधु आपे भावै सोई वरतै जी तूं आपे करहि सु होई ॥ 

तुधु आपे स्रिसटि सभ उपाई जी तुधु आपे सिरजि सभ गोई ॥ 

जनु नानकु गुण गावै करते के जी जो सभसै का जाणोई ॥५॥१॥


आसा महला ४ ॥

तूं करता सचिआरु मैडा सांई ॥ 

जो तउ भावै सोई थीसी जो तूं देहि सोई हउ पाई ॥१॥ रहाउ ॥


सभ तेरी तूं सभनी धिआइआ ॥ 

जिस नो क्रिपा करहि तिनि नाम रतनु पाइआ ॥ 

गुरमुखि लाधा मनमुखि गवाइआ ॥ 

तुधु आपि विछोड़िआ आपि मिलाइआ ॥१॥


तूं दरीआउ सभ तुझ ही माहि ॥ 

तुझ बिनु दूजा कोई नाहि ॥ 

जीअ जंत सभि तेरा खेलु ॥ 

विजोगि मिलि विछुड़िआ संजोगी मेलु ॥२॥


जिस नो तू जाणाइहि सोई जनु जाणै ॥ 

हरि गुण सद ही आखि वखाणै ॥ 

जिनि हरि सेविआ तिनि सुखु पाइआ ॥ 

सहजे ही हरि नामि समाइआ ॥३॥


तू आपे करता तेरा कीआ सभु होइ ॥ 

तुधु बिनु दूजा अवरु न कोइ ॥ 

तू करि करि वेखहि जाणहि सोइ ॥ 

जन नानक गुरमुखि परगटु होइ ॥४॥२॥


आसा महला १ ॥

तितु सरवरड़ै भईले निवासा पाणी पावकु तिनहि कीआ ॥ 

पंकजु मोह पगु नही चालै हम देखा तह डूबीअले ॥१॥


मन एकु न चेतसि मूड़ मना ॥ 

हरि बिसरत तेरे गुण गलिआ ॥१॥ रहाउ ॥


ना हउ जती सती नही पड़िआ मूरख मुगधा जनमु भइआ ॥ 

प्रणवति नानक तिन की सरणा जिन तू नाही वीसरिआ ॥२॥३॥


आसा महला ५ ॥

भई परापति मानुख देहुरीआ ॥ 

गोबिंद मिलण की इह तेरी बरीआ ॥ 

अवरि काज तेरै कितै न काम ॥ 

मिलु साधसंगति भजु केवल नाम ॥१॥


सरंजामि लागु भवजल तरन कै ॥ 

जनमु ब्रिथा जात रंगि माइआ कै ॥१॥ रहाउ ॥


जपु तपु संजमु धरमु न कमाइआ ॥ 

सेवा साध न जानिआ हरि राइआ ॥ 

कहु नानक हम नीच करमा ॥ 

सरणि परे की राखहु सरमा ॥२॥४॥


कबियो बाच बेनती ॥

चौपई ॥

हमरी करो हाथ दै रच्छा ॥ 

पूरन होइ चित की इच्छा ॥ 

तव चरनन मन रहै हमारा ॥ 

अपना जान करो प्रतिपारा ॥३७७॥ 

हमरे दुसट सभै तुम घावहु ॥ 

आपु हाथ दै मोहि बचावहु ॥ 

सुखी बसै मोरो परिवारा ॥ 

सेवक सिक्ख सभै करतारा ॥३७८॥ 

मो रच्छा निज कर दै करियै ॥ 

सभ बैरन को आज संघरियै ॥ 

पूरन होइ हमारी आसा ॥ 

तोर भजन की रहै पिआसा ॥३७९॥ 

तुमहि छाडि कोई अवर न धियाऊं ॥ 

जो बर चहों सु तुम ते पाऊं ॥ 

सेवक सिक्ख हमारे तारीअहि ॥ 

चुनि चुनि सत्र हमारे मारीअहि ॥३८०॥ 

आप हाथ दै मुझै उबरियै ॥ 

मरन काल का त्रास निवरियै ॥ 

हूजो सदा हमारे पच्छा ॥ 

स्री असिधुज जू करियहु रच्छा ॥३८१॥ 

राखि लेहु मुहि राखनहारे ॥ 

साहिब संत सहाइ पियारे ॥ 

दीन बंधु दुसटन के हंता ॥ 

तुम हो पुरी चतुर दस कंता ॥३८२॥ 

काल पाइ ब्रहमा बपु धरा ॥ 

काल पाइ सिवजू अवतरा ॥ 

काल पाइ कर बिसनु प्रकासा ॥ 

सकल काल का कीआ तमासा ॥३८३॥ 

जवन काल जोगी सिव कीओ ॥ 

बेद राज ब्रहमा जू थीओ ॥ 

जवन काल सभ लोक सवारा ॥ 

नमसकार है ताहि हमारा ॥३८४॥ 

जवन काल सभ जगत बनायो ॥ 

देव दैत जच्छन उपजायो ॥ 

आदि अंति एकै अवतारा ॥ 

सोई गुरू समझियहु हमारा ॥३८५॥ 

नमसकार तिस ही को हमारी ॥ 

सकल प्रजा जिन आप सवारी ॥ 

सिवकन को सिवगुन सुख दीओ ॥ 

सत्््रुन को पल मो बध कीओ ॥३८६॥ 

घट घट के अंतर की जानत ॥ 

भले बुरे की पीर पछानत ॥ 

चीटी ते कुँचर असथूला ॥ 

सभ पर कृपा दृसटि कर फूला ॥३८७॥ 

संतन दुख पाए ते दुखी ॥ 

सुख पाए साधुन के सुखी ॥ 

एक एक की पीर पछानैं ॥ 

घट घट के पट पट की जानैं ॥३८८॥ 

जब उदकरख करा करतारा ॥ 

प्रजा धरत तब देह अपारा ॥ 

जब आकरख करत हो कबहूँ ॥ 

तुम मै मिलत देह धर सभहूँ ॥३८९॥ 

जेते बदन सृसटि सभ धारै ॥ 

आपु आपनी बूझ उचारै ॥ 

तुम सभही ते रहत निरालम ॥ 

जानत बेद भेद अर आलम ॥३९०॥ 

निरंकार नृबिकार निरलंभ ॥ 

आदि अनील अनादि असंभ ॥ 

ता का मूड़्ह उचारत भेदा ॥ 

जा को भेव न पावत बेदा ॥३९१॥ 

ता को करि पाहन अनुमानत ॥ 

महा मूड़्ह कछु भेद न जानत ॥ 

महादेव को कहत सदा सिव ॥ 

निरंकार का चीनत नहि भिव ॥३९२॥ 

आपु आपनी बुधि है जेती ॥ 

बरनत भिंन भिंन तुहि तेती ॥ 

तुमरा लखा न जाइ पसारा ॥ 

किह बिधि सजा प्रथम संसारा ॥३९३॥ 

एकै रूप अनूप सरूपा ॥ 

रंक भयो राव कही भूपा ॥ 

अंडज जेरज सेतज कीनी ॥ 

उतभुज खानि बहुर रचि दीनी ॥३९४॥ 

कहूँ फूल राजा ह्वै बैठा ॥ 

कहूँ सिमटि भि्यो संकर इकैठा ॥ 

सगरी सृसटि दिखाइ अचंभव ॥ 

आदि जुगादि सरूप सुयंभव ॥३९५॥ 

अब रच्छा मेरी तुम करो ॥ 

सिक्ख उबारि असिक्ख संघरो ॥ 

दुशट जिते उठवत उतपाता ॥ 

सकल मलेछ करो रण घाता ॥३९६॥ 

जे असिधुज तव सरनी परे ॥ 

तिन के दुशट दुखित ह्वै मरे ॥ 

पुरख जवन पग परे तिहारे ॥ 

तिन के तुम संकट सभ टारे ॥३९७॥ 

जो कलि को इक बार धिऐ है ॥ 

ता के काल निकटि नहि ऐहै ॥ 

रच्छा होइ ताहि सभ काला ॥ 

दुसट अरिसट टरें ततकाला ॥३९८॥ 

कृपा दृसटि तन जाहि निहरिहो ॥ 

ताके ताप तनक मो हरिहो ॥ 

रिद्धि सिद्धि घर मो सभ होई ॥ 

दुशट छाह छ्वै सकै न कोई ॥३९९॥ 

एक बार जिन तुमै संभारा ॥ 

काल फास ते ताहि उबारा ॥ 

जिन नर नाम तिहारो कहा ॥ 

दारिद दुसट दोख ते रहा ॥४००॥ 

खड़ग केत मै सरणि तिहारी ॥ 

आप हाथ दै लेहु उबारी ॥ 

सरब ठौर मो होहु सहाई ॥ 

दुसट दोख ते लेहु बचाई ॥४०१॥


स्वैया ॥

पाइ गहे जब ते तुमरे तब ते कोऊ आँख तरे नही आनयो ॥ 

राम रहीम पुरान कुरान अनेक कहैं मत एक न मानयो ॥ 

सिंमृति सासत्र बेद सभै बहु भेद कहै हम एक न जानयो ॥ 

स्री असिपान कृपा तुमरी करि मै न कहयो सभ तोहि बखानयो ॥८६३॥


दोहरा ॥

सगल दुआर कउ छाडि कै गहयो तुहारो दुआर ॥ 

बाहि गहे की लाज असि गोबिंद दास तुहार ॥८६४॥


रामकली महला ३ अनंदु

ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

अनंदु भइआ मेरी माए सतिगुरू मै पाइआ ॥ 

सतिगुरु त पाइआ सहज सेती मनि वजीआ वाधाईआ ॥ 

राग रतन परवार परीआ सबद गावण आईआ ॥ 

सबदो त गावहु हरी केरा मनि जिनी वसाइआ ॥ 

कहै नानकु अनंदु होआ सतिगुरू मै पाइआ ॥१॥


ए मन मेरिआ तू सदा रहु हरि नाले ॥ 

हरि नालि रहु तू मंन मेरे दूख सभि विसारणा ॥ 

अंगीकारु ओहु करे तेरा कारज सभि सवारणा ॥ 

सभना गला समरथु सुआमी सो किउ मनहु विसारे ॥ 

कहै नानकु मंन मेरे सदा रहु हरि नाले ॥२॥


साचे साहिबा किआ नाही घरि तेरै ॥ 

घरि त तेरै सभु किछु है जिसु देहि सु पावए ॥ 

सदा सिफति सलाह तेरी नामु मनि वसावए ॥ 

नामु जिन कै मनि वसिआ वाजे सबद घनेरे ॥ 

कहै नानकु सचे साहिब किआ नाही घरि तेरै ॥३॥


साचा नामु मेरा आधारो ॥ 

साचु नामु अधारु मेरा जिनि भुखा सभि गवाईआ ॥ 

करि सांति सुख मनि आइ वसिआ जिनि इछा सभि पुजाईआ ॥ 

सदा कुरबाणु कीता गुरू विटहु जिस दीआ एहि वडिआईआ ॥ 

कहै नानकु सुणहु संतहु सबदि धरहु पिआरो ॥ 

साचा नामु मेरा आधारो ॥४॥


वाजे पंच सबद तितु घरि सभागै ॥ 

घरि सभागै सबद वाजे कला जितु घरि धारीआ ॥ 

पंच दूत तुधु वसि कीते कालु कंटकु मारिआ ॥ 

धुरि करमि पाइआ तुधु जिन कउ सि नामि हरि कै लागे ॥ 

कहै नानकु तह सुखु होआ तितु घरि अनहद वाजे ॥५॥


अनदु सुणहु वडभागीहो सगल मनोरथ पूरे ॥ 

पारब्रहमु प्रभु पाइआ उतरे सगल विसूरे ॥ 

दूख रोग संताप उतरे सुणी सची बाणी ॥ 

संत साजन भए सरसे पूरे गुर ते जाणी ॥ 

सुणते पुनीत कहते पवितु सतिगुरु रहिआ भरपूरे ॥ 

बिनवंति नानकु गुर चरण लागे वाजे अनहद तूरे ॥४०॥१॥


मुंदावणी महला ५ ॥

थाल विचि तिंनि वसतू पईओ सतु संतोखु वीचारो ॥ 

अम्रित नामु ठाकुर का पइओ जिस का सभसु अधारो ॥ 

जे को खावै जे को भुंचै तिस का होइ उधारो ॥ 

एह वसतु तजी नह जाई नित नित रखु उरि धारो ॥ 

तम संसारु चरन लगि तरीऐ सभु नानक ब्रहम पसारो ॥१॥


सलोक महला ५ ॥

तेरा कीता जातो नाही मैनो जोगु कीतोई ॥ 

मै निरगुणिआरे को गुणु नाही आपे तरसु पइओई ॥ 

तरसु पइआ मिहरामति होई सतिगुरु सजणु मिलिआ ॥ 

नानक नामु मिलै तां जीवां तनु मनु थीवै हरिआ ॥१॥


पउड़ी ॥

तिथै तू समरथु जिथै कोइ नाहि ॥ 

ओथै तेरी रख अगनी उदर माहि ॥ 

सुणि कै जम के दूत नाइ तेरै छडि जाहि ॥ 

भउजलु बिखमु असगाहु गुर सबदी पारि पाहि ॥ 

जिन कउ लगी पिआस अम्रितु सेइ खाहि ॥ 

कलि महि एहो पुंनु गुण गोविंद गाहि ॥ 

सभसै नो किरपालु सम्हाले साहि साहि ॥ 

बिरथा कोइ न जाइ जि आवै तुधु आहि ॥९॥


सलोकु मः ५ ॥

अंतरि गुरु आराधणा जिहवा जपि गुर नाउ ॥ 

नेत्री सतिगुरु पेखणा स्रवणी सुनणा गुर नाउ ॥ 

सतिगुर सेती रतिआ दरगह पाईऐ ठाउ ॥ 

कहु नानक किरपा करे जिस नो एह वथु देइ ॥ 

जग महि उतम काढीअहि विरले केई केइ ॥१॥


मः ५ ॥

रखे रखणहारि आपि उबारिअनु ॥ 

गुर की पैरी पाइ काज सवारिअनु ॥ 

होआ आपि दइआलु मनहु न विसारिअनु ॥ 

साध जना कै संगि भवजलु तारिअनु ॥ 

साकत निंदक दुसट खिन माहि बिदारिअनु ॥ 

तिसु साहिब की टेक नानक मनै माहि ॥ 

जिसु सिमरत सुखु होइ सगले दूख जाहि ॥२॥


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