Onkar Dakhni

ओअंकारु महला 1(Onkar Dakhni)

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रामकली महला १ दखणी ओअंकारु

ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

ओअंकारि ब्रहमा उतपति ॥ 

ओअंकारु कीआ जिनि चिति ॥ 

ओअंकारि सैल जुग भए ॥ 

ओअंकारि बेद निरमए ॥ 

ओअंकारि सबदि उधरे ॥ 

ओअंकारि गुरमुखि तरे ॥ 

ओनम अखर सुणहु बीचारु ॥ 

ओनम अखरु त्रिभवण सारु ॥१॥


सुणि पाडे किआ लिखहु जंजाला ॥ 

लिखु राम नाम गुरमुखि गोपाला ॥१॥ रहाउ ॥


ससै सभु जगु सहजि उपाइआ तीनि भवन इक जोती ॥ 

गुरमुखि वसतु परापति होवै चुणि लै माणक मोती ॥ 

समझै सूझै पड़ि पड़ि बूझै अंति निरंतरि साचा ॥ 

Onkar Dakhni

गुरमुखि देखै साचु समाले बिनु साचे जगु काचा ॥२॥


धधै धरमु धरे धरमा पुरि गुणकारी मनु धीरा ॥ 

धधै धूलि पड़ै मुखि मसतकि कंचन भए मनूरा ॥ 

धनु धरणीधरु आपि अजोनी तोलि बोलि सचु पूरा ॥ 

करते की मिति करता जाणै कै जाणै गुरु सूरा ॥३॥


ङिआनु गवाइआ दूजा भाइआ गरबि गले बिखु खाइआ ॥ 

गुर रसु गीत बाद नही भावै सुणीऐ गहिर ग्मभीरु गवाइआ ॥ 

गुरि सचु कहिआ अम्रितु लहिआ मनि तनि साचु सुखाइआ ॥ 

आपे गुरमुखि आपे देवै आपे अम्रितु पीआइआ ॥४॥


एको एकु कहै सभु कोई हउमै गरबु विआपै ॥ 

अंतरि बाहरि एकु पछाणै इउ घरु महलु सिञापै ॥ 

प्रभु नेड़ै हरि दूरि न जाणहु एको स्रिसटि सबाई ॥ 

एकंकारु अवरु नही दूजा नानक एकु समाई ॥५॥


इसु करते कउ किउ गहि राखउ अफरिओ तुलिओ न जाई ॥ 

माइआ के देवाने प्राणी झूठि ठगउरी पाई ॥ 

लबि लोभि मुहताजि विगूते इब तब फिरि पछुताई ॥ 

एकु सरेवै ता गति मिति पावै आवणु जाणु रहाई ॥६॥


एकु अचारु रंगु इकु रूपु ॥ 

पउण पाणी अगनी असरूपु ॥ 

एको भवरु भवै तिहु लोइ ॥ 

एको बूझै सूझै पति होइ ॥ 

गिआनु धिआनु ले समसरि रहै ॥ 

गुरमुखि एकु विरला को लहै ॥ 

जिस नो देइ किरपा ते सुखु पाए ॥ 

गुरू दुआरै आखि सुणाए ॥७॥


ऊरम धूरम जोति उजाला ॥ 

तीनि भवण महि गुर गोपाला ॥ 

ऊगविआ असरूपु दिखावै ॥ 

करि किरपा अपुनै घरि आवै ॥ 

ऊनवि बरसै नीझर धारा ॥ 

ऊतम सबदि सवारणहारा ॥ 

इसु एके का जाणै भेउ ॥ 

आपे करता आपे देउ ॥८॥


उगवै सूरु असुर संघारै ॥ 

ऊचउ देखि सबदि बीचारै ॥ 

ऊपरि आदि अंति तिहु लोइ ॥ 

आपे करै कथै सुणै सोइ ॥ 

ओहु बिधाता मनु तनु देइ ॥ 

ओहु बिधाता मनि मुखि सोइ ॥ 

प्रभु जगजीवनु अवरु न कोइ ॥ 

नानक नामि रते पति होइ ॥९॥


राजन राम रवै हितकारि ॥ 

रण महि लूझै मनूआ मारि ॥ 

राति दिनंति रहै रंगि राता ॥ 

तीनि भवन जुग चारे जाता ॥ 

जिनि जाता सो तिस ही जेहा ॥ 

अति निरमाइलु सीझसि देहा ॥ 

रहसी रामु रिदै इक भाइ ॥ 

अंतरि सबदु साचि लिव लाइ ॥१०॥


रोसु न कीजै अम्रितु पीजै रहणु नही संसारे ॥ 

राजे राइ रंक नही रहणा आइ जाइ जुग चारे ॥ 

रहण कहण ते रहै न कोई किसु पहि करउ बिनंती ॥ 

एकु सबदु राम नाम निरोधरु गुरु देवै पति मती ॥११॥


लाज मरंती मरि गई घूघटु खोलि चली ॥ 

सासु दिवानी बावरी सिर ते संक टली ॥ 

प्रेमि बुलाई रली सिउ मन महि सबदु अनंदु ॥ 

लालि रती लाली भई गुरमुखि भई निचिंदु ॥१२॥


लाहा नामु रतनु जपि सारु ॥ 

लबु लोभु बुरा अहंकारु ॥ 

लाड़ी चाड़ी लाइतबारु ॥ 

मनमुखु अंधा मुगधु गवारु ॥ 

लाहे कारणि आइआ जगि ॥ 

होइ मजूरु गइआ ठगाइ ठगि ॥ 

लाहा नामु पूंजी वेसाहु ॥ 

नानक सची पति सचा पातिसाहु ॥१३॥


आइ विगूता जगु जम पंथु ॥ 

आई न मेटण को समरथु ॥ 

आथि सैल नीच घरि होइ ॥ 

आथि देखि निवै जिसु दोइ ॥ 

आथि होइ ता मुगधु सिआना ॥ 

भगति बिहूना जगु बउराना ॥ 

सभ महि वरतै एको सोइ ॥ 

जिस नो किरपा करे तिसु परगटु होइ ॥१४॥


जुगि जुगि थापि सदा निरवैरु ॥ 

जनमि मरणि नही धंधा धैरु ॥ 

जो दीसै सो आपे आपि ॥ 

आपि उपाइ आपे घट थापि ॥ 

आपि अगोचरु धंधै लोई ॥ 

जोग जुगति जगजीवनु सोई ॥ 

करि आचारु सचु सुखु होई ॥ 

नाम विहूणा मुकति किव होई ॥१५॥


विणु नावै वेरोधु सरीर ॥ 

किउ न मिलहि काटहि मन पीर ॥ 

वाट वटाऊ आवै जाइ ॥ 

किआ ले आइआ किआ पलै पाइ ॥ 

विणु नावै तोटा सभ थाइ ॥ 

लाहा मिलै जा देइ बुझाइ ॥ 

वणजु वापारु वणजै वापारी ॥ 

विणु नावै कैसी पति सारी ॥१६॥


गुण वीचारे गिआनी सोइ ॥ 

गुण महि गिआनु परापति होइ ॥ 

गुणदाता विरला संसारि ॥ 

साची करणी गुर वीचारि ॥ 

अगम अगोचरु कीमति नही पाइ ॥ 

ता मिलीऐ जा लए मिलाइ ॥ 

गुणवंती गुण सारे नीत ॥ 

नानक गुरमति मिलीऐ मीत ॥१७॥


कामु क्रोधु काइआ कउ गालै ॥ 

जिउ कंचन सोहागा ढालै ॥ 

कसि कसवटी सहै सु ताउ ॥ 

नदरि सराफ वंनी सचड़ाउ ॥ 

जगतु पसू अहं कालु कसाई ॥ 

करि करतै करणी करि पाई ॥ 

जिनि कीती तिनि कीमति पाई ॥ 

होर किआ कहीऐ किछु कहणु न जाई ॥१८॥


खोजत खोजत अम्रितु पीआ ॥ 

खिमा गही मनु सतगुरि दीआ ॥ 

खरा खरा आखै सभु कोइ ॥ 

खरा रतनु जुग चारे होइ ॥ 

खात पीअंत मूए नही जानिआ ॥ 

खिन महि मूए जा सबदु पछानिआ ॥ 

असथिरु चीतु मरनि मनु मानिआ ॥ 

गुर किरपा ते नामु पछानिआ ॥१९॥


गगन ग्मभीरु गगनंतरि वासु ॥ 

गुण गावै सुख सहजि निवासु ॥ 

गइआ न आवै आइ न जाइ ॥ 

गुर परसादि रहै लिव लाइ ॥ 

गगनु अगमु अनाथु अजोनी ॥ 

असथिरु चीतु समाधि सगोनी ॥ 

हरि नामु चेति फिरि पवहि न जूनी ॥ 

गुरमति सारु होर नाम बिहूनी ॥२०॥


घर दर फिरि थाकी बहुतेरे ॥ 

जाति असंख अंत नही मेरे ॥ 

केते मात पिता सुत धीआ ॥ 

केते गुर चेले फुनि हूआ ॥ 

काचे गुर ते मुकति न हूआ ॥ 

केती नारि वरु एकु समालि ॥ 

गुरमुखि मरणु जीवणु प्रभ नालि ॥ 

दह दिस ढूढि घरै महि पाइआ ॥ 

मेलु भइआ सतिगुरू मिलाइआ ॥२१॥


गुरमुखि गावै गुरमुखि बोलै ॥ 

गुरमुखि तोलि तोलावै तोलै ॥ 

गुरमुखि आवै जाइ निसंगु ॥ 

परहरि मैलु जलाइ कलंकु ॥ 

गुरमुखि नाद बेद बीचारु ॥ 

गुरमुखि मजनु चजु अचारु ॥ 

गुरमुखि सबदु अम्रितु है सारु ॥ 

नानक गुरमुखि पावै पारु ॥२२॥


चंचलु चीतु न रहई ठाइ ॥ 

चोरी मिरगु अंगूरी खाइ ॥ 

चरन कमल उर धारे चीत ॥ 

चिरु जीवनु चेतनु नित नीत ॥ 

चिंतत ही दीसै सभु कोइ ॥ 

चेतहि एकु तही सुखु होइ ॥ 

चिति वसै राचै हरि नाइ ॥ 

मुकति भइआ पति सिउ घरि जाइ ॥२३॥


छीजै देह खुलै इक गंढि ॥ 

छेआ नित देखहु जगि हंढि ॥ 

धूप छाव जे सम करि जाणै ॥ 

बंधन काटि मुकति घरि आणै ॥ 

छाइआ छूछी जगतु भुलाना ॥ 

लिखिआ किरतु धुरे परवाना ॥ 

छीजै जोबनु जरूआ सिरि कालु ॥ 

काइआ छीजै भई सिबालु ॥२४॥


जापै आपि प्रभू तिहु लोइ ॥ 

जुगि जुगि दाता अवरु न कोइ ॥ 

जिउ भावै तिउ राखहि राखु ॥ 

जसु जाचउ देवै पति साखु ॥ 

जागतु जागि रहा तुधु भावा ॥ 

जा तू मेलहि ता तुझै समावा ॥ 

जै जै कारु जपउ जगदीस ॥ 

गुरमति मिलीऐ बीस इकीस ॥२५॥


झखि बोलणु किआ जग सिउ वादु ॥ 

झूरि मरै देखै परमादु ॥ 

जनमि मूए नही जीवण आसा ॥ 

आइ चले भए आस निरासा ॥ 

झुरि झुरि झखि माटी रलि जाइ ॥ 

कालु न चांपै हरि गुण गाइ ॥ 

पाई नव निधि हरि कै नाइ ॥ 

आपे देवै सहजि सुभाइ ॥२६॥


ञिआनो बोलै आपे बूझै ॥ 

आपे समझै आपे सूझै ॥ 

गुर का कहिआ अंकि समावै ॥ 

निरमल सूचे साचो भावै ॥ 

गुरु सागरु रतनी नही तोट ॥ 

लाल पदारथ साचु अखोट ॥ 

गुरि कहिआ सा कार कमावहु ॥ 

गुर की करणी काहे धावहु ॥ 

नानक गुरमति साचि समावहु ॥२७॥


टूटै नेहु कि बोलहि सही ॥ 

टूटै बाह दुहू दिस गही ॥ 

टूटि परीति गई बुर बोलि ॥ 

दुरमति परहरि छाडी ढोलि ॥ 

टूटै गंठि पड़ै वीचारि ॥ 

गुर सबदी घरि कारजु सारि ॥ 

लाहा साचु न आवै तोटा ॥ 

त्रिभवण ठाकुरु प्रीतमु मोटा ॥२८॥


ठाकहु मनूआ राखहु ठाइ ॥ 

ठहकि मुई अवगुणि पछुताइ ॥ 

ठाकुरु एकु सबाई नारि ॥ 

बहुते वेस करे कूड़िआरि ॥ 

पर घरि जाती ठाकि रहाई ॥ 

महलि बुलाई ठाक न पाई ॥ 

सबदि सवारी साचि पिआरी ॥ 

साई सोहागणि ठाकुरि धारी ॥२९॥


डोलत डोलत हे सखी फाटे चीर सीगार ॥ 

डाहपणि तनि सुखु नही बिनु डर बिणठी डार ॥ 

डरपि मुई घरि आपणै डीठी कंति सुजाणि ॥ 

डरु राखिआ गुरि आपणै निरभउ नामु वखाणि ॥ 

डूगरि वासु तिखा घणी जब देखा नही दूरि ॥ 

तिखा निवारी सबदु मंनि अम्रितु पीआ भरपूरि ॥ 

देहि देहि आखै सभु कोई जै भावै तै देइ ॥ 

गुरू दुआरै देवसी तिखा निवारै सोइ ॥३०॥


ढंढोलत ढूढत हउ फिरी ढहि ढहि पवनि करारि ॥ 

भारे ढहते ढहि पए हउले निकसे पारि ॥ 

अमर अजाची हरि मिले तिन कै हउ बलि जाउ ॥ 

तिन की धूड़ि अघुलीऐ संगति मेलि मिलाउ ॥ 

मनु दीआ गुरि आपणै पाइआ निरमल नाउ ॥ 

जिनि नामु दीआ तिसु सेवसा तिसु बलिहारै जाउ ॥ 

जो उसारे सो ढाहसी तिसु बिनु अवरु न कोइ ॥ 

गुर परसादी तिसु सम्हला ता तनि दूखु न होइ ॥३१॥


णा को मेरा किसु गही णा को होआ न होगु ॥ 

आवणि जाणि विगुचीऐ दुबिधा विआपै रोगु ॥ 

णाम विहूणे आदमी कलर कंध गिरंति ॥ 

विणु नावै किउ छूटीऐ जाइ रसातलि अंति ॥ 

गणत गणावै अखरी अगणतु साचा सोइ ॥ 

अगिआनी मतिहीणु है गुर बिनु गिआनु न होइ ॥ 

तूटी तंतु रबाब की वाजै नही विजोगि ॥ 

विछुड़िआ मेलै प्रभू नानक करि संजोग ॥३२॥


तरवरु काइआ पंखि मनु तरवरि पंखी पंच ॥ 

ततु चुगहि मिलि एकसे तिन कउ फास न रंच ॥ 

उडहि त बेगुल बेगुले ताकहि चोग घणी ॥ 

पंख तुटे फाही पड़ी अवगुणि भीड़ बणी ॥ 

बिनु साचे किउ छूटीऐ हरि गुण करमि मणी ॥ 

आपि छडाए छूटीऐ वडा आपि धणी ॥ 

गुर परसादी छूटीऐ किरपा आपि करेइ ॥ 

अपणै हाथि वडाईआ जै भावै तै देइ ॥३३॥


थर थर क्मपै जीअड़ा थान विहूणा होइ ॥ 

थानि मानि सचु एकु है काजु न फीटै कोइ ॥ 

थिरु नाराइणु थिरु गुरू थिरु साचा बीचारु ॥ 

सुरि नर नाथह नाथु तू निधारा आधारु ॥ 

सरबे थान थनंतरी तू दाता दातारु ॥ 

जह देखा तह एकु तू अंतु न पारावारु ॥ 

थान थनंतरि रवि रहिआ गुर सबदी वीचारि ॥ 

अणमंगिआ दानु देवसी वडा अगम अपारु ॥३४॥


दइआ दानु दइआलु तू करि करि देखणहारु ॥ 

दइआ करहि प्रभ मेलि लैहि खिन महि ढाहि उसारि ॥ 

दाना तू बीना तुही दाना कै सिरि दानु ॥ 

दालद भंजन दुख दलण गुरमुखि गिआनु धिआनु ॥३५॥


धनि गइऐ बहि झूरीऐ धन महि चीतु गवार ॥ 

धनु विरली सचु संचिआ निरमलु नामु पिआरि ॥ 

धनु गइआ ता जाण देहि जे राचहि रंगि एक ॥ 

मनु दीजै सिरु सउपीऐ भी करते की टेक ॥ 

धंधा धावत रहि गए मन महि सबदु अनंदु ॥ 

दुरजन ते साजन भए भेटे गुर गोविंद ॥ 

बनु बनु फिरती ढूढती बसतु रही घरि बारि ॥ 

सतिगुरि मेली मिलि रही जनम मरण दुखु निवारि ॥३६॥


नाना करत न छूटीऐ विणु गुण जम पुरि जाहि ॥ 

ना तिसु एहु न ओहु है अवगुणि फिरि पछुताहि ॥ 

ना तिसु गिआनु न धिआनु है ना तिसु धरमु धिआनु ॥ 

विणु नावै निरभउ कहा किआ जाणा अभिमानु ॥ 

थाकि रही किव अपड़ा हाथ नही ना पारु ॥ 

ना साजन से रंगुले किसु पहि करी पुकार ॥ 

नानक प्रिउ प्रिउ जे करी मेले मेलणहारु ॥ 

जिनि विछोड़ी सो मेलसी गुर कै हेति अपारि ॥३७॥


पापु बुरा पापी कउ पिआरा ॥ 

पापि लदे पापे पासारा ॥ 

परहरि पापु पछाणै आपु ॥ 

ना तिसु सोगु विजोगु संतापु ॥ 

नरकि पड़ंतउ किउ रहै किउ बंचै जमकालु ॥ 

किउ आवण जाणा वीसरै झूठु बुरा खै कालु ॥ 

मनु जंजाली वेड़िआ भी जंजाला माहि ॥ 

विणु नावै किउ छूटीऐ पापे पचहि पचाहि ॥३८॥


फिरि फिरि फाही फासै कऊआ ॥ 

फिरि पछुताना अब किआ हूआ ॥ 

फाथा चोग चुगै नही बूझै ॥ 

सतगुरु मिलै त आखी सूझै ॥ 

जिउ मछुली फाथी जम जालि ॥ 

विणु गुर दाते मुकति न भालि ॥ 

फिरि फिरि आवै फिरि फिरि जाइ ॥ 

इक रंगि रचै रहै लिव लाइ ॥ 

इव छूटै फिरि फास न पाइ ॥३९॥


बीरा बीरा करि रही बीर भए बैराइ ॥ 

बीर चले घरि आपणै बहिण बिरहि जलि जाइ ॥ 

बाबुल कै घरि बेटड़ी बाली बालै नेहि ॥ 

जे लोड़हि वरु कामणी सतिगुरु सेवहि तेहि ॥ 

बिरलो गिआनी बूझणउ सतिगुरु साचि मिलेइ ॥ 

ठाकुर हाथि वडाईआ जै भावै तै देइ ॥ 

बाणी बिरलउ बीचारसी जे को गुरमुखि होइ ॥ 

इह बाणी महा पुरख की निज घरि वासा होइ ॥४०॥


भनि भनि घड़ीऐ घड़ि घड़ि भजै ढाहि उसारै उसरे ढाहै ॥ 

सर भरि सोखै भी भरि पोखै समरथ वेपरवाहै ॥ 

भरमि भुलाने भए दिवाने विणु भागा किआ पाईऐ ॥ 

गुरमुखि गिआनु डोरी प्रभि पकड़ी जिन खिंचै तिन जाईऐ ॥ 

हरि गुण गाइ सदा रंगि राते बहुड़ि न पछोताईऐ ॥ 

भभै भालहि गुरमुखि बूझहि ता निज घरि वासा पाईऐ ॥ 

भभै भउजलु मारगु विखड़ा आस निरासा तरीऐ ॥ 

गुर परसादी आपो चीन्है जीवतिआ इव मरीऐ ॥४१॥


माइआ माइआ करि मुए माइआ किसै न साथि ॥ 

हंसु चलै उठि डुमणो माइआ भूली आथि ॥ 

मनु झूठा जमि जोहिआ अवगुण चलहि नालि ॥ 

मन महि मनु उलटो मरै जे गुण होवहि नालि ॥ 

मेरी मेरी करि मुए विणु नावै दुखु भालि ॥ 

गड़ मंदर महला कहा जिउ बाजी दीबाणु ॥ 

नानक सचे नाम विणु झूठा आवण जाणु ॥ 

आपे चतुरु सरूपु है आपे जाणु सुजाणु ॥४२॥


जो आवहि से जाहि फुनि आइ गए पछुताहि ॥ 

लख चउरासीह मेदनी घटै न वधै उताहि ॥ 

से जन उबरे जिन हरि भाइआ ॥ 

धंधा मुआ विगूती माइआ ॥ 

जो दीसै सो चालसी किस कउ मीतु करेउ ॥ 

जीउ समपउ आपणा तनु मनु आगै देउ ॥ 

असथिरु करता तू धणी तिस ही की मै ओट ॥ 

गुण की मारी हउ मुई सबदि रती मनि चोट ॥४३॥


राणा राउ न को रहै रंगु न तुंगु फकीरु ॥ 

वारी आपो आपणी कोइ न बंधै धीर ॥ 

राहु बुरा भीहावला सर डूगर असगाह ॥ 

मै तनि अवगण झुरि मुई विणु गुण किउ घरि जाह ॥ 

गुणीआ गुण ले प्रभ मिले किउ तिन मिलउ पिआरि ॥ 

तिन ही जैसी थी रहां जपि जपि रिदै मुरारि ॥ 

अवगुणी भरपूर है गुण भी वसहि नालि ॥ 

विणु सतगुर गुण न जापनी जिचरु सबदि न करे बीचारु ॥४४॥


लसकरीआ घर समले आए वजहु लिखाइ ॥ 

कार कमावहि सिरि धणी लाहा पलै पाइ ॥ 

लबु लोभु बुरिआईआ छोडे मनहु विसारि ॥ 

गड़ि दोही पातिसाह की कदे न आवै हारि ॥ 

चाकरु कहीऐ खसम का सउहे उतर देइ ॥ 

वजहु गवाए आपणा तखति न बैसहि सेइ ॥ 

प्रीतम हथि वडिआईआ जै भावै तै देइ ॥ 

आपि करे किसु आखीऐ अवरु न कोइ करेइ ॥४५॥


बीजउ सूझै को नही बहै दुलीचा पाइ ॥ 

नरक निवारणु नरह नरु साचउ साचै नाइ ॥ 

वणु त्रिणु ढूढत फिरि रही मन महि करउ बीचारु ॥ 

लाल रतन बहु माणकी सतिगुर हाथि भंडारु ॥ 

ऊतमु होवा प्रभु मिलै इक मनि एकै भाइ ॥ 

नानक प्रीतम रसि मिले लाहा लै परथाइ ॥ 

रचना राचि जिनि रची जिनि सिरिआ आकारु ॥ 

गुरमुखि बेअंतु धिआईऐ अंतु न पारावारु ॥४६॥


ड़ाड़ै रूड़ा हरि जीउ सोई ॥ 

तिसु बिनु राजा अवरु न कोई ॥ 

ड़ाड़ै गारुड़ु तुम सुणहु हरि वसै मन माहि ॥ 

गुर परसादी हरि पाईऐ मतु को भरमि भुलाहि ॥ 

सो साहु साचा जिसु हरि धनु रासि ॥ 

गुरमुखि पूरा तिसु साबासि ॥ 

रूड़ी बाणी हरि पाइआ गुर सबदी बीचारि ॥ 

आपु गइआ दुखु कटिआ हरि वरु पाइआ नारि ॥४७॥


सुइना रुपा संचीऐ धनु काचा बिखु छारु ॥ 

साहु सदाए संचि धनु दुबिधा होइ खुआरु ॥ 

सचिआरी सचु संचिआ साचउ नामु अमोलु ॥ 

हरि निरमाइलु ऊजलो पति साची सचु बोलु ॥ 

साजनु मीतु सुजाणु तू तू सरवरु तू हंसु ॥ 

साचउ ठाकुरु मनि वसै हउ बलिहारी तिसु ॥ 

माइआ ममता मोहणी जिनि कीती सो जाणु ॥ 

बिखिआ अम्रितु एकु है बूझै पुरखु सुजाणु ॥४८॥


खिमा विहूणे खपि गए खूहणि लख असंख ॥ 

गणत न आवै किउ गणी खपि खपि मुए बिसंख ॥ 

खसमु पछाणै आपणा खूलै बंधु न पाइ ॥ 

सबदि महली खरा तू खिमा सचु सुख भाइ ॥ 

खरचु खरा धनु धिआनु तू आपे वसहि सरीरि ॥ 

मनि तनि मुखि जापै सदा गुण अंतरि मनि धीर ॥ 

हउमै खपै खपाइसी बीजउ वथु विकारु ॥ 

जंत उपाइ विचि पाइअनु करता अलगु अपारु ॥४९॥


स्रिसटे भेउ न जाणै कोइ ॥ 

स्रिसटा करै सु निहचउ होइ ॥ 

स्मपै कउ ईसरु धिआईऐ ॥ 

स्मपै पुरबि लिखे की पाईऐ ॥ 

स्मपै कारणि चाकर चोर ॥ 

स्मपै साथि न चालै होर ॥ 

बिनु साचे नही दरगह मानु ॥ 

हरि रसु पीवै छुटै निदानि ॥५०॥


हेरत हेरत हे सखी होइ रही हैरानु ॥ 

हउ हउ करती मै मुई सबदि रवै मनि गिआनु ॥ 

हार डोर कंकन घणे करि थाकी सीगारु ॥ 

मिलि प्रीतम सुखु पाइआ सगल गुणा गलि हारु ॥ 

नानक गुरमुखि पाईऐ हरि सिउ प्रीति पिआरु ॥ 

हरि बिनु किनि सुखु पाइआ देखहु मनि बीचारि ॥ 

हरि पड़णा हरि बुझणा हरि सिउ रखहु पिआरु ॥ 

हरि जपीऐ हरि धिआईऐ हरि का नामु अधारु ॥५१॥


लेखु न मिटई हे सखी जो लिखिआ करतारि ॥ 

आपे कारणु जिनि कीआ करि किरपा पगु धारि ॥ 

करते हथि वडिआईआ बूझहु गुर बीचारि ॥ 

लिखिआ फेरि न सकीऐ जिउ भावी तिउ सारि ॥ 

नदरि तेरी सुखु पाइआ नानक सबदु वीचारि ॥ 

मनमुख भूले पचि मुए उबरे गुर बीचारि ॥ 

जि पुरखु नदरि न आवई तिस का किआ करि कहिआ जाइ ॥ 

बलिहारी गुर आपणे जिनि हिरदै दिता दिखाइ ॥५२॥


पाधा पड़िआ आखीऐ बिदिआ बिचरै सहजि सुभाइ ॥ 

बिदिआ सोधै ततु लहै राम नाम लिव लाइ ॥ 

मनमुखु बिदिआ बिक्रदा बिखु खटे बिखु खाइ ॥ 

मूरखु सबदु न चीनई सूझ बूझ नह काइ ॥५३॥


पाधा गुरमुखि आखीऐ चाटड़िआ मति देइ ॥ 

नामु समालहु नामु संगरहु लाहा जग महि लेइ ॥ 

सची पटी सचु मनि पड़ीऐ सबदु सु सारु ॥ 

नानक सो पड़िआ सो पंडितु बीना जिसु राम नामु गलि हारु ॥५४॥१॥


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