रामकली महला १ दखणी ओअंकारु
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ओअंकारि ब्रहमा उतपति ॥
ओअंकारु कीआ जिनि चिति ॥
ओअंकारि सैल जुग भए ॥
ओअंकारि बेद निरमए ॥
ओअंकारि सबदि उधरे ॥
ओअंकारि गुरमुखि तरे ॥
ओनम अखर सुणहु बीचारु ॥
ओनम अखरु त्रिभवण सारु ॥१॥
सुणि पाडे किआ लिखहु जंजाला ॥
लिखु राम नाम गुरमुखि गोपाला ॥१॥ रहाउ ॥
ससै सभु जगु सहजि उपाइआ तीनि भवन इक जोती ॥
गुरमुखि वसतु परापति होवै चुणि लै माणक मोती ॥
समझै सूझै पड़ि पड़ि बूझै अंति निरंतरि साचा ॥

गुरमुखि देखै साचु समाले बिनु साचे जगु काचा ॥२॥
धधै धरमु धरे धरमा पुरि गुणकारी मनु धीरा ॥
धधै धूलि पड़ै मुखि मसतकि कंचन भए मनूरा ॥
धनु धरणीधरु आपि अजोनी तोलि बोलि सचु पूरा ॥
करते की मिति करता जाणै कै जाणै गुरु सूरा ॥३॥
ङिआनु गवाइआ दूजा भाइआ गरबि गले बिखु खाइआ ॥
गुर रसु गीत बाद नही भावै सुणीऐ गहिर ग्मभीरु गवाइआ ॥
गुरि सचु कहिआ अम्रितु लहिआ मनि तनि साचु सुखाइआ ॥
आपे गुरमुखि आपे देवै आपे अम्रितु पीआइआ ॥४॥
एको एकु कहै सभु कोई हउमै गरबु विआपै ॥
अंतरि बाहरि एकु पछाणै इउ घरु महलु सिञापै ॥
प्रभु नेड़ै हरि दूरि न जाणहु एको स्रिसटि सबाई ॥
एकंकारु अवरु नही दूजा नानक एकु समाई ॥५॥
इसु करते कउ किउ गहि राखउ अफरिओ तुलिओ न जाई ॥
माइआ के देवाने प्राणी झूठि ठगउरी पाई ॥
लबि लोभि मुहताजि विगूते इब तब फिरि पछुताई ॥
एकु सरेवै ता गति मिति पावै आवणु जाणु रहाई ॥६॥
एकु अचारु रंगु इकु रूपु ॥
पउण पाणी अगनी असरूपु ॥
एको भवरु भवै तिहु लोइ ॥
एको बूझै सूझै पति होइ ॥
गिआनु धिआनु ले समसरि रहै ॥
गुरमुखि एकु विरला को लहै ॥
जिस नो देइ किरपा ते सुखु पाए ॥
गुरू दुआरै आखि सुणाए ॥७॥
ऊरम धूरम जोति उजाला ॥
तीनि भवण महि गुर गोपाला ॥
ऊगविआ असरूपु दिखावै ॥
करि किरपा अपुनै घरि आवै ॥
ऊनवि बरसै नीझर धारा ॥
ऊतम सबदि सवारणहारा ॥
इसु एके का जाणै भेउ ॥
आपे करता आपे देउ ॥८॥
उगवै सूरु असुर संघारै ॥
ऊचउ देखि सबदि बीचारै ॥
ऊपरि आदि अंति तिहु लोइ ॥
आपे करै कथै सुणै सोइ ॥
ओहु बिधाता मनु तनु देइ ॥
ओहु बिधाता मनि मुखि सोइ ॥
प्रभु जगजीवनु अवरु न कोइ ॥
नानक नामि रते पति होइ ॥९॥
राजन राम रवै हितकारि ॥
रण महि लूझै मनूआ मारि ॥
राति दिनंति रहै रंगि राता ॥
तीनि भवन जुग चारे जाता ॥
जिनि जाता सो तिस ही जेहा ॥
अति निरमाइलु सीझसि देहा ॥
रहसी रामु रिदै इक भाइ ॥
अंतरि सबदु साचि लिव लाइ ॥१०॥
रोसु न कीजै अम्रितु पीजै रहणु नही संसारे ॥
राजे राइ रंक नही रहणा आइ जाइ जुग चारे ॥
रहण कहण ते रहै न कोई किसु पहि करउ बिनंती ॥
एकु सबदु राम नाम निरोधरु गुरु देवै पति मती ॥११॥
लाज मरंती मरि गई घूघटु खोलि चली ॥
सासु दिवानी बावरी सिर ते संक टली ॥
प्रेमि बुलाई रली सिउ मन महि सबदु अनंदु ॥
लालि रती लाली भई गुरमुखि भई निचिंदु ॥१२॥
लाहा नामु रतनु जपि सारु ॥
लबु लोभु बुरा अहंकारु ॥
लाड़ी चाड़ी लाइतबारु ॥
मनमुखु अंधा मुगधु गवारु ॥
लाहे कारणि आइआ जगि ॥
होइ मजूरु गइआ ठगाइ ठगि ॥
लाहा नामु पूंजी वेसाहु ॥
नानक सची पति सचा पातिसाहु ॥१३॥
आइ विगूता जगु जम पंथु ॥
आई न मेटण को समरथु ॥
आथि सैल नीच घरि होइ ॥
आथि देखि निवै जिसु दोइ ॥
आथि होइ ता मुगधु सिआना ॥
भगति बिहूना जगु बउराना ॥
सभ महि वरतै एको सोइ ॥
जिस नो किरपा करे तिसु परगटु होइ ॥१४॥
जुगि जुगि थापि सदा निरवैरु ॥
जनमि मरणि नही धंधा धैरु ॥
जो दीसै सो आपे आपि ॥
आपि उपाइ आपे घट थापि ॥
आपि अगोचरु धंधै लोई ॥
जोग जुगति जगजीवनु सोई ॥
करि आचारु सचु सुखु होई ॥
नाम विहूणा मुकति किव होई ॥१५॥
विणु नावै वेरोधु सरीर ॥
किउ न मिलहि काटहि मन पीर ॥
वाट वटाऊ आवै जाइ ॥
किआ ले आइआ किआ पलै पाइ ॥
विणु नावै तोटा सभ थाइ ॥
लाहा मिलै जा देइ बुझाइ ॥
वणजु वापारु वणजै वापारी ॥
विणु नावै कैसी पति सारी ॥१६॥
गुण वीचारे गिआनी सोइ ॥
गुण महि गिआनु परापति होइ ॥
गुणदाता विरला संसारि ॥
साची करणी गुर वीचारि ॥
अगम अगोचरु कीमति नही पाइ ॥
ता मिलीऐ जा लए मिलाइ ॥
गुणवंती गुण सारे नीत ॥
नानक गुरमति मिलीऐ मीत ॥१७॥
कामु क्रोधु काइआ कउ गालै ॥
जिउ कंचन सोहागा ढालै ॥
कसि कसवटी सहै सु ताउ ॥
नदरि सराफ वंनी सचड़ाउ ॥
जगतु पसू अहं कालु कसाई ॥
करि करतै करणी करि पाई ॥
जिनि कीती तिनि कीमति पाई ॥
होर किआ कहीऐ किछु कहणु न जाई ॥१८॥
खोजत खोजत अम्रितु पीआ ॥
खिमा गही मनु सतगुरि दीआ ॥
खरा खरा आखै सभु कोइ ॥
खरा रतनु जुग चारे होइ ॥
खात पीअंत मूए नही जानिआ ॥
खिन महि मूए जा सबदु पछानिआ ॥
असथिरु चीतु मरनि मनु मानिआ ॥
गुर किरपा ते नामु पछानिआ ॥१९॥
गगन ग्मभीरु गगनंतरि वासु ॥
गुण गावै सुख सहजि निवासु ॥
गइआ न आवै आइ न जाइ ॥
गुर परसादि रहै लिव लाइ ॥
गगनु अगमु अनाथु अजोनी ॥
असथिरु चीतु समाधि सगोनी ॥
हरि नामु चेति फिरि पवहि न जूनी ॥
गुरमति सारु होर नाम बिहूनी ॥२०॥
घर दर फिरि थाकी बहुतेरे ॥
जाति असंख अंत नही मेरे ॥
केते मात पिता सुत धीआ ॥
केते गुर चेले फुनि हूआ ॥
काचे गुर ते मुकति न हूआ ॥
केती नारि वरु एकु समालि ॥
गुरमुखि मरणु जीवणु प्रभ नालि ॥
दह दिस ढूढि घरै महि पाइआ ॥
मेलु भइआ सतिगुरू मिलाइआ ॥२१॥
गुरमुखि गावै गुरमुखि बोलै ॥
गुरमुखि तोलि तोलावै तोलै ॥
गुरमुखि आवै जाइ निसंगु ॥
परहरि मैलु जलाइ कलंकु ॥
गुरमुखि नाद बेद बीचारु ॥
गुरमुखि मजनु चजु अचारु ॥
गुरमुखि सबदु अम्रितु है सारु ॥
नानक गुरमुखि पावै पारु ॥२२॥
चंचलु चीतु न रहई ठाइ ॥
चोरी मिरगु अंगूरी खाइ ॥
चरन कमल उर धारे चीत ॥
चिरु जीवनु चेतनु नित नीत ॥
चिंतत ही दीसै सभु कोइ ॥
चेतहि एकु तही सुखु होइ ॥
चिति वसै राचै हरि नाइ ॥
मुकति भइआ पति सिउ घरि जाइ ॥२३॥
छीजै देह खुलै इक गंढि ॥
छेआ नित देखहु जगि हंढि ॥
धूप छाव जे सम करि जाणै ॥
बंधन काटि मुकति घरि आणै ॥
छाइआ छूछी जगतु भुलाना ॥
लिखिआ किरतु धुरे परवाना ॥
छीजै जोबनु जरूआ सिरि कालु ॥
काइआ छीजै भई सिबालु ॥२४॥
जापै आपि प्रभू तिहु लोइ ॥
जुगि जुगि दाता अवरु न कोइ ॥
जिउ भावै तिउ राखहि राखु ॥
जसु जाचउ देवै पति साखु ॥
जागतु जागि रहा तुधु भावा ॥
जा तू मेलहि ता तुझै समावा ॥
जै जै कारु जपउ जगदीस ॥
गुरमति मिलीऐ बीस इकीस ॥२५॥
झखि बोलणु किआ जग सिउ वादु ॥
झूरि मरै देखै परमादु ॥
जनमि मूए नही जीवण आसा ॥
आइ चले भए आस निरासा ॥
झुरि झुरि झखि माटी रलि जाइ ॥
कालु न चांपै हरि गुण गाइ ॥
पाई नव निधि हरि कै नाइ ॥
आपे देवै सहजि सुभाइ ॥२६॥
ञिआनो बोलै आपे बूझै ॥
आपे समझै आपे सूझै ॥
गुर का कहिआ अंकि समावै ॥
निरमल सूचे साचो भावै ॥
गुरु सागरु रतनी नही तोट ॥
लाल पदारथ साचु अखोट ॥
गुरि कहिआ सा कार कमावहु ॥
गुर की करणी काहे धावहु ॥
नानक गुरमति साचि समावहु ॥२७॥
टूटै नेहु कि बोलहि सही ॥
टूटै बाह दुहू दिस गही ॥
टूटि परीति गई बुर बोलि ॥
दुरमति परहरि छाडी ढोलि ॥
टूटै गंठि पड़ै वीचारि ॥
गुर सबदी घरि कारजु सारि ॥
लाहा साचु न आवै तोटा ॥
त्रिभवण ठाकुरु प्रीतमु मोटा ॥२८॥
ठाकहु मनूआ राखहु ठाइ ॥
ठहकि मुई अवगुणि पछुताइ ॥
ठाकुरु एकु सबाई नारि ॥
बहुते वेस करे कूड़िआरि ॥
पर घरि जाती ठाकि रहाई ॥
महलि बुलाई ठाक न पाई ॥
सबदि सवारी साचि पिआरी ॥
साई सोहागणि ठाकुरि धारी ॥२९॥
डोलत डोलत हे सखी फाटे चीर सीगार ॥
डाहपणि तनि सुखु नही बिनु डर बिणठी डार ॥
डरपि मुई घरि आपणै डीठी कंति सुजाणि ॥
डरु राखिआ गुरि आपणै निरभउ नामु वखाणि ॥
डूगरि वासु तिखा घणी जब देखा नही दूरि ॥
तिखा निवारी सबदु मंनि अम्रितु पीआ भरपूरि ॥
देहि देहि आखै सभु कोई जै भावै तै देइ ॥
गुरू दुआरै देवसी तिखा निवारै सोइ ॥३०॥
ढंढोलत ढूढत हउ फिरी ढहि ढहि पवनि करारि ॥
भारे ढहते ढहि पए हउले निकसे पारि ॥
अमर अजाची हरि मिले तिन कै हउ बलि जाउ ॥
तिन की धूड़ि अघुलीऐ संगति मेलि मिलाउ ॥
मनु दीआ गुरि आपणै पाइआ निरमल नाउ ॥
जिनि नामु दीआ तिसु सेवसा तिसु बलिहारै जाउ ॥
जो उसारे सो ढाहसी तिसु बिनु अवरु न कोइ ॥
गुर परसादी तिसु सम्हला ता तनि दूखु न होइ ॥३१॥
णा को मेरा किसु गही णा को होआ न होगु ॥
आवणि जाणि विगुचीऐ दुबिधा विआपै रोगु ॥
णाम विहूणे आदमी कलर कंध गिरंति ॥
विणु नावै किउ छूटीऐ जाइ रसातलि अंति ॥
गणत गणावै अखरी अगणतु साचा सोइ ॥
अगिआनी मतिहीणु है गुर बिनु गिआनु न होइ ॥
तूटी तंतु रबाब की वाजै नही विजोगि ॥
विछुड़िआ मेलै प्रभू नानक करि संजोग ॥३२॥
तरवरु काइआ पंखि मनु तरवरि पंखी पंच ॥
ततु चुगहि मिलि एकसे तिन कउ फास न रंच ॥
उडहि त बेगुल बेगुले ताकहि चोग घणी ॥
पंख तुटे फाही पड़ी अवगुणि भीड़ बणी ॥
बिनु साचे किउ छूटीऐ हरि गुण करमि मणी ॥
आपि छडाए छूटीऐ वडा आपि धणी ॥
गुर परसादी छूटीऐ किरपा आपि करेइ ॥
अपणै हाथि वडाईआ जै भावै तै देइ ॥३३॥
थर थर क्मपै जीअड़ा थान विहूणा होइ ॥
थानि मानि सचु एकु है काजु न फीटै कोइ ॥
थिरु नाराइणु थिरु गुरू थिरु साचा बीचारु ॥
सुरि नर नाथह नाथु तू निधारा आधारु ॥
सरबे थान थनंतरी तू दाता दातारु ॥
जह देखा तह एकु तू अंतु न पारावारु ॥
थान थनंतरि रवि रहिआ गुर सबदी वीचारि ॥
अणमंगिआ दानु देवसी वडा अगम अपारु ॥३४॥
दइआ दानु दइआलु तू करि करि देखणहारु ॥
दइआ करहि प्रभ मेलि लैहि खिन महि ढाहि उसारि ॥
दाना तू बीना तुही दाना कै सिरि दानु ॥
दालद भंजन दुख दलण गुरमुखि गिआनु धिआनु ॥३५॥
धनि गइऐ बहि झूरीऐ धन महि चीतु गवार ॥
धनु विरली सचु संचिआ निरमलु नामु पिआरि ॥
धनु गइआ ता जाण देहि जे राचहि रंगि एक ॥
मनु दीजै सिरु सउपीऐ भी करते की टेक ॥
धंधा धावत रहि गए मन महि सबदु अनंदु ॥
दुरजन ते साजन भए भेटे गुर गोविंद ॥
बनु बनु फिरती ढूढती बसतु रही घरि बारि ॥
सतिगुरि मेली मिलि रही जनम मरण दुखु निवारि ॥३६॥
नाना करत न छूटीऐ विणु गुण जम पुरि जाहि ॥
ना तिसु एहु न ओहु है अवगुणि फिरि पछुताहि ॥
ना तिसु गिआनु न धिआनु है ना तिसु धरमु धिआनु ॥
विणु नावै निरभउ कहा किआ जाणा अभिमानु ॥
थाकि रही किव अपड़ा हाथ नही ना पारु ॥
ना साजन से रंगुले किसु पहि करी पुकार ॥
नानक प्रिउ प्रिउ जे करी मेले मेलणहारु ॥
जिनि विछोड़ी सो मेलसी गुर कै हेति अपारि ॥३७॥
पापु बुरा पापी कउ पिआरा ॥
पापि लदे पापे पासारा ॥
परहरि पापु पछाणै आपु ॥
ना तिसु सोगु विजोगु संतापु ॥
नरकि पड़ंतउ किउ रहै किउ बंचै जमकालु ॥
किउ आवण जाणा वीसरै झूठु बुरा खै कालु ॥
मनु जंजाली वेड़िआ भी जंजाला माहि ॥
विणु नावै किउ छूटीऐ पापे पचहि पचाहि ॥३८॥
फिरि फिरि फाही फासै कऊआ ॥
फिरि पछुताना अब किआ हूआ ॥
फाथा चोग चुगै नही बूझै ॥
सतगुरु मिलै त आखी सूझै ॥
जिउ मछुली फाथी जम जालि ॥
विणु गुर दाते मुकति न भालि ॥
फिरि फिरि आवै फिरि फिरि जाइ ॥
इक रंगि रचै रहै लिव लाइ ॥
इव छूटै फिरि फास न पाइ ॥३९॥
बीरा बीरा करि रही बीर भए बैराइ ॥
बीर चले घरि आपणै बहिण बिरहि जलि जाइ ॥
बाबुल कै घरि बेटड़ी बाली बालै नेहि ॥
जे लोड़हि वरु कामणी सतिगुरु सेवहि तेहि ॥
बिरलो गिआनी बूझणउ सतिगुरु साचि मिलेइ ॥
ठाकुर हाथि वडाईआ जै भावै तै देइ ॥
बाणी बिरलउ बीचारसी जे को गुरमुखि होइ ॥
इह बाणी महा पुरख की निज घरि वासा होइ ॥४०॥
भनि भनि घड़ीऐ घड़ि घड़ि भजै ढाहि उसारै उसरे ढाहै ॥
सर भरि सोखै भी भरि पोखै समरथ वेपरवाहै ॥
भरमि भुलाने भए दिवाने विणु भागा किआ पाईऐ ॥
गुरमुखि गिआनु डोरी प्रभि पकड़ी जिन खिंचै तिन जाईऐ ॥
हरि गुण गाइ सदा रंगि राते बहुड़ि न पछोताईऐ ॥
भभै भालहि गुरमुखि बूझहि ता निज घरि वासा पाईऐ ॥
भभै भउजलु मारगु विखड़ा आस निरासा तरीऐ ॥
गुर परसादी आपो चीन्है जीवतिआ इव मरीऐ ॥४१॥
माइआ माइआ करि मुए माइआ किसै न साथि ॥
हंसु चलै उठि डुमणो माइआ भूली आथि ॥
मनु झूठा जमि जोहिआ अवगुण चलहि नालि ॥
मन महि मनु उलटो मरै जे गुण होवहि नालि ॥
मेरी मेरी करि मुए विणु नावै दुखु भालि ॥
गड़ मंदर महला कहा जिउ बाजी दीबाणु ॥
नानक सचे नाम विणु झूठा आवण जाणु ॥
आपे चतुरु सरूपु है आपे जाणु सुजाणु ॥४२॥
जो आवहि से जाहि फुनि आइ गए पछुताहि ॥
लख चउरासीह मेदनी घटै न वधै उताहि ॥
से जन उबरे जिन हरि भाइआ ॥
धंधा मुआ विगूती माइआ ॥
जो दीसै सो चालसी किस कउ मीतु करेउ ॥
जीउ समपउ आपणा तनु मनु आगै देउ ॥
असथिरु करता तू धणी तिस ही की मै ओट ॥
गुण की मारी हउ मुई सबदि रती मनि चोट ॥४३॥
राणा राउ न को रहै रंगु न तुंगु फकीरु ॥
वारी आपो आपणी कोइ न बंधै धीर ॥
राहु बुरा भीहावला सर डूगर असगाह ॥
मै तनि अवगण झुरि मुई विणु गुण किउ घरि जाह ॥
गुणीआ गुण ले प्रभ मिले किउ तिन मिलउ पिआरि ॥
तिन ही जैसी थी रहां जपि जपि रिदै मुरारि ॥
अवगुणी भरपूर है गुण भी वसहि नालि ॥
विणु सतगुर गुण न जापनी जिचरु सबदि न करे बीचारु ॥४४॥
लसकरीआ घर समले आए वजहु लिखाइ ॥
कार कमावहि सिरि धणी लाहा पलै पाइ ॥
लबु लोभु बुरिआईआ छोडे मनहु विसारि ॥
गड़ि दोही पातिसाह की कदे न आवै हारि ॥
चाकरु कहीऐ खसम का सउहे उतर देइ ॥
वजहु गवाए आपणा तखति न बैसहि सेइ ॥
प्रीतम हथि वडिआईआ जै भावै तै देइ ॥
आपि करे किसु आखीऐ अवरु न कोइ करेइ ॥४५॥
बीजउ सूझै को नही बहै दुलीचा पाइ ॥
नरक निवारणु नरह नरु साचउ साचै नाइ ॥
वणु त्रिणु ढूढत फिरि रही मन महि करउ बीचारु ॥
लाल रतन बहु माणकी सतिगुर हाथि भंडारु ॥
ऊतमु होवा प्रभु मिलै इक मनि एकै भाइ ॥
नानक प्रीतम रसि मिले लाहा लै परथाइ ॥
रचना राचि जिनि रची जिनि सिरिआ आकारु ॥
गुरमुखि बेअंतु धिआईऐ अंतु न पारावारु ॥४६॥
ड़ाड़ै रूड़ा हरि जीउ सोई ॥
तिसु बिनु राजा अवरु न कोई ॥
ड़ाड़ै गारुड़ु तुम सुणहु हरि वसै मन माहि ॥
गुर परसादी हरि पाईऐ मतु को भरमि भुलाहि ॥
सो साहु साचा जिसु हरि धनु रासि ॥
गुरमुखि पूरा तिसु साबासि ॥
रूड़ी बाणी हरि पाइआ गुर सबदी बीचारि ॥
आपु गइआ दुखु कटिआ हरि वरु पाइआ नारि ॥४७॥
सुइना रुपा संचीऐ धनु काचा बिखु छारु ॥
साहु सदाए संचि धनु दुबिधा होइ खुआरु ॥
सचिआरी सचु संचिआ साचउ नामु अमोलु ॥
हरि निरमाइलु ऊजलो पति साची सचु बोलु ॥
साजनु मीतु सुजाणु तू तू सरवरु तू हंसु ॥
साचउ ठाकुरु मनि वसै हउ बलिहारी तिसु ॥
माइआ ममता मोहणी जिनि कीती सो जाणु ॥
बिखिआ अम्रितु एकु है बूझै पुरखु सुजाणु ॥४८॥
खिमा विहूणे खपि गए खूहणि लख असंख ॥
गणत न आवै किउ गणी खपि खपि मुए बिसंख ॥
खसमु पछाणै आपणा खूलै बंधु न पाइ ॥
सबदि महली खरा तू खिमा सचु सुख भाइ ॥
खरचु खरा धनु धिआनु तू आपे वसहि सरीरि ॥
मनि तनि मुखि जापै सदा गुण अंतरि मनि धीर ॥
हउमै खपै खपाइसी बीजउ वथु विकारु ॥
जंत उपाइ विचि पाइअनु करता अलगु अपारु ॥४९॥
स्रिसटे भेउ न जाणै कोइ ॥
स्रिसटा करै सु निहचउ होइ ॥
स्मपै कउ ईसरु धिआईऐ ॥
स्मपै पुरबि लिखे की पाईऐ ॥
स्मपै कारणि चाकर चोर ॥
स्मपै साथि न चालै होर ॥
बिनु साचे नही दरगह मानु ॥
हरि रसु पीवै छुटै निदानि ॥५०॥
हेरत हेरत हे सखी होइ रही हैरानु ॥
हउ हउ करती मै मुई सबदि रवै मनि गिआनु ॥
हार डोर कंकन घणे करि थाकी सीगारु ॥
मिलि प्रीतम सुखु पाइआ सगल गुणा गलि हारु ॥
नानक गुरमुखि पाईऐ हरि सिउ प्रीति पिआरु ॥
हरि बिनु किनि सुखु पाइआ देखहु मनि बीचारि ॥
हरि पड़णा हरि बुझणा हरि सिउ रखहु पिआरु ॥
हरि जपीऐ हरि धिआईऐ हरि का नामु अधारु ॥५१॥
लेखु न मिटई हे सखी जो लिखिआ करतारि ॥
आपे कारणु जिनि कीआ करि किरपा पगु धारि ॥
करते हथि वडिआईआ बूझहु गुर बीचारि ॥
लिखिआ फेरि न सकीऐ जिउ भावी तिउ सारि ॥
नदरि तेरी सुखु पाइआ नानक सबदु वीचारि ॥
मनमुख भूले पचि मुए उबरे गुर बीचारि ॥
जि पुरखु नदरि न आवई तिस का किआ करि कहिआ जाइ ॥
बलिहारी गुर आपणे जिनि हिरदै दिता दिखाइ ॥५२॥
पाधा पड़िआ आखीऐ बिदिआ बिचरै सहजि सुभाइ ॥
बिदिआ सोधै ततु लहै राम नाम लिव लाइ ॥
मनमुखु बिदिआ बिक्रदा बिखु खटे बिखु खाइ ॥
मूरखु सबदु न चीनई सूझ बूझ नह काइ ॥५३॥
पाधा गुरमुखि आखीऐ चाटड़िआ मति देइ ॥
नामु समालहु नामु संगरहु लाहा जग महि लेइ ॥
सची पटी सचु मनि पड़ीऐ सबदु सु सारु ॥
नानक सो पड़िआ सो पंडितु बीना जिसु राम नामु गलि हारु ॥५४॥१॥
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