Siddh Gosht
रामकली महला १ सिध गोसटि
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
सिध सभा करि आसणि बैठे संत सभा जैकारो ॥
तिसु आगै रहरासि हमारी साचा अपर अपारो ॥
मसतकु काटि धरी तिसु आगै तनु मनु आगै देउ ॥
नानक संतु मिलै सचु पाईऐ सहज भाइ जसु लेउ ॥१॥
किआ भवीऐ सचि सूचा होइ ॥
साच सबद बिनु मुकति न कोइ ॥१॥ रहाउ ॥
कवन तुमे किआ नाउ तुमारा कउनु मारगु कउनु सुआओ ॥
साचु कहउ अरदासि हमारी हउ संत जना बलि जाओ ॥
कह बैसहु कह रहीऐ बाले कह आवहु कह जाहो ॥
नानकु बोलै सुणि बैरागी किआ तुमारा राहो ॥२॥
घटि घटि बैसि निरंतरि रहीऐ चालहि सतिगुर भाए ॥
सहजे आए हुकमि सिधाए नानक सदा रजाए ॥
आसणि बैसणि थिरु नाराइणु ऐसी गुरमति पाए ॥
गुरमुखि बूझै आपु पछाणै सचे सचि समाए ॥३॥
दुनीआ सागरु दुतरु कहीऐ किउ करि पाईऐ पारो ॥
चरपटु बोलै अउधू नानक देहु सचा बीचारो ॥
आपे आखै आपे समझै तिसु किआ उतरु दीजै ॥
साचु कहहु तुम पारगरामी तुझु किआ बैसणु दीजै ॥४॥
जैसे जल महि कमलु निरालमु मुरगाई नै साणे ॥
सुरति सबदि भव सागरु तरीऐ नानक नामु वखाणे ॥
रहहि इकांति एको मनि वसिआ आसा माहि निरासो ॥
अगमु अगोचरु देखि दिखाए नानकु ता का दासो ॥५॥
सुणि सुआमी अरदासि हमारी पूछउ साचु बीचारो ॥
रोसु न कीजै उतरु दीजै किउ पाईऐ गुर दुआरो ॥
इहु मनु चलतउ सच घरि बैसै नानक नामु अधारो ॥
आपे मेलि मिलाए करता लागै साचि पिआरो ॥६॥
हाटी बाटी रहहि निराले रूखि बिरखि उदिआने ॥
कंद मूलु अहारो खाईऐ अउधू बोलै गिआने ॥
तीरथि नाईऐ सुखु फलु पाईऐ मैलु न लागै काई ॥
गोरख पूतु लोहारीपा बोलै जोग जुगति बिधि साई ॥७॥
हाटी बाटी नीद न आवै पर घरि चितु न डोलाई ॥
बिनु नावै मनु टेक न टिकई नानक भूख न जाई ॥
हाटु पटणु घरु गुरू दिखाइआ सहजे सचु वापारो ॥
खंडित निद्रा अलप अहारं नानक ततु बीचारो ॥८॥
दरसनु भेख करहु जोगिंद्रा मुंद्रा झोली खिंथा ॥
बारह अंतरि एकु सरेवहु खटु दरसन इक पंथा ॥
इन बिधि मनु समझाईऐ पुरखा बाहुड़ि चोट न खाईऐ ॥
नानकु बोलै गुरमुखि बूझै जोग जुगति इव पाईऐ ॥९॥
अंतरि सबदु निरंतरि मुद्रा हउमै ममता दूरि करी ॥
कामु क्रोधु अहंकारु निवारै गुर कै सबदि सु समझ परी ॥
खिंथा झोली भरिपुरि रहिआ नानक तारै एकु हरी ॥
साचा साहिबु साची नाई परखै गुर की बात खरी ॥१०॥
ऊंधउ खपरु पंच भू टोपी ॥
कांइआ कड़ासणु मनु जागोटी ॥
सतु संतोखु संजमु है नालि ॥
नानक गुरमुखि नामु समालि ॥११॥
कवनु सु गुपता कवनु सु मुकता ॥
कवनु सु अंतरि बाहरि जुगता ॥
कवनु सु आवै कवनु सु जाइ ॥
कवनु सु त्रिभवणि रहिआ समाइ ॥१२॥
घटि घटि गुपता गुरमुखि मुकता ॥
अंतरि बाहरि सबदि सु जुगता ॥
मनमुखि बिनसै आवै जाइ ॥
नानक गुरमुखि साचि समाइ ॥१३॥
किउ करि बाधा सरपनि खाधा ॥
किउ करि खोइआ किउ करि लाधा ॥
किउ करि निरमलु किउ करि अंधिआरा ॥
इहु ततु बीचारै सु गुरू हमारा ॥१४॥
दुरमति बाधा सरपनि खाधा ॥
मनमुखि खोइआ गुरमुखि लाधा ॥
सतिगुरु मिलै अंधेरा जाइ ॥
नानक हउमै मेटि समाइ ॥१५॥
सुंन निरंतरि दीजै बंधु ॥
उडै न हंसा पड़ै न कंधु ॥
सहज गुफा घरु जाणै साचा ॥
नानक साचे भावै साचा ॥१६॥
किसु कारणि ग्रिहु तजिओ उदासी ॥
किसु कारणि इहु भेखु निवासी ॥
किसु वखर के तुम वणजारे ॥
किउ करि साथु लंघावहु पारे ॥१७॥
गुरमुखि खोजत भए उदासी ॥
दरसन कै ताई भेख निवासी ॥
साच वखर के हम वणजारे ॥
नानक गुरमुखि उतरसि पारे ॥१८॥
कितु बिधि पुरखा जनमु वटाइआ ॥
काहे कउ तुझु इहु मनु लाइआ ॥
कितु बिधि आसा मनसा खाई ॥
कितु बिधि जोति निरंतरि पाई ॥
बिनु दंता किउ खाईऐ सारु ॥
नानक साचा करहु बीचारु ॥१९॥
सतिगुर कै जनमे गवनु मिटाइआ ॥
अनहति राते इहु मनु लाइआ ॥
मनसा आसा सबदि जलाई ॥
गुरमुखि जोति निरंतरि पाई ॥
त्रै गुण मेटे खाईऐ सारु ॥
नानक तारे तारणहारु ॥२०॥
आदि कउ कवनु बीचारु कथीअले सुंन कहा घर वासो ॥
गिआन की मुद्रा कवन कथीअले घटि घटि कवन निवासो ॥
काल का ठीगा किउ जलाईअले किउ निरभउ घरि जाईऐ ॥
सहज संतोख का आसणु जाणै किउ छेदे बैराईऐ ॥
गुर कै सबदि हउमै बिखु मारै ता निज घरि होवै वासो ॥
जिनि रचि रचिआ तिसु सबदि पछाणै नानकु ता का दासो ॥२१॥
कहा ते आवै कहा इहु जावै कहा इहु रहै समाई ॥
एसु सबद कउ जो अरथावै तिसु गुर तिलु न तमाई ॥
किउ ततै अविगतै पावै गुरमुखि लगै पिआरो ॥
आपे सुरता आपे करता कहु नानक बीचारो ॥
हुकमे आवै हुकमे जावै हुकमे रहै समाई ॥
पूरे गुर ते साचु कमावै गति मिति सबदे पाई ॥२२॥
आदि कउ बिसमादु बीचारु कथीअले सुंन निरंतरि वासु लीआ ॥
अकलपत मुद्रा गुर गिआनु बीचारीअले घटि घटि साचा सरब जीआ ॥
गुर बचनी अविगति समाईऐ ततु निरंजनु सहजि लहै ॥
नानक दूजी कार न करणी सेवै सिखु सु खोजि लहै ॥
हुकमु बिसमादु हुकमि पछाणै जीअ जुगति सचु जाणै सोई ॥
आपु मेटि निरालमु होवै अंतरि साचु जोगी कहीऐ सोई ॥२३॥
अविगतो निरमाइलु उपजे निरगुण ते सरगुणु थीआ ॥
सतिगुर परचै परम पदु पाईऐ साचै सबदि समाइ लीआ ॥
एके कउ सचु एका जाणै हउमै दूजा दूरि कीआ ॥
सो जोगी गुर सबदु पछाणै अंतरि कमलु प्रगासु थीआ ॥
जीवतु मरै ता सभु किछु सूझै अंतरि जाणै सरब दइआ ॥
नानक ता कउ मिलै वडाई आपु पछाणै सरब जीआ ॥२४॥
साचौ उपजै साचि समावै साचे सूचे एक मइआ ॥
झूठे आवहि ठवर न पावहि दूजै आवा गउणु भइआ ॥
आवा गउणु मिटै गुर सबदी आपे परखै बखसि लइआ ॥
एका बेदन दूजै बिआपी नामु रसाइणु वीसरिआ ॥
सो बूझै जिसु आपि बुझाए गुर कै सबदि सु मुकतु भइआ ॥
नानक तारे तारणहारा हउमै दूजा परहरिआ ॥२५॥
मनमुखि भूलै जम की काणि ॥
पर घरु जोहै हाणे हाणि ॥
मनमुखि भरमि भवै बेबाणि ॥
वेमारगि मूसै मंत्रि मसाणि ॥
सबदु न चीनै लवै कुबाणि ॥
नानक साचि रते सुखु जाणि ॥२६॥
गुरमुखि साचे का भउ पावै ॥
गुरमुखि बाणी अघड़ु घड़ावै ॥
गुरमुखि निरमल हरि गुण गावै ॥
गुरमुखि पवित्रु परम पदु पावै ॥
गुरमुखि रोमि रोमि हरि धिआवै ॥
नानक गुरमुखि साचि समावै ॥२७॥
गुरमुखि परचै बेद बीचारी ॥
गुरमुखि परचै तरीऐ तारी ॥
गुरमुखि परचै सु सबदि गिआनी ॥
गुरमुखि परचै अंतर बिधि जानी ॥
गुरमुखि पाईऐ अलख अपारु ॥
नानक गुरमुखि मुकति दुआरु ॥२८॥
गुरमुखि अकथु कथै बीचारि ॥
गुरमुखि निबहै सपरवारि ॥
गुरमुखि जपीऐ अंतरि पिआरि ॥
गुरमुखि पाईऐ सबदि अचारि ॥
सबदि भेदि जाणै जाणाई ॥
नानक हउमै जालि समाई ॥२९॥
गुरमुखि धरती साचै साजी ॥
तिस महि ओपति खपति सु बाजी ॥
गुर कै सबदि रपै रंगु लाइ ॥
साचि रतउ पति सिउ घरि जाइ ॥
साच सबद बिनु पति नही पावै ॥
नानक बिनु नावै किउ साचि समावै ॥३०॥
गुरमुखि असट सिधी सभि बुधी ॥
गुरमुखि भवजलु तरीऐ सच सुधी ॥
गुरमुखि सर अपसर बिधि जाणै ॥
गुरमुखि परविरति नरविरति पछाणै ॥
गुरमुखि तारे पारि उतारे ॥
नानक गुरमुखि सबदि निसतारे ॥३१॥
नामे राते हउमै जाइ ॥
नामि रते सचि रहे समाइ ॥
नामि रते जोग जुगति बीचारु ॥
नामि रते पावहि मोख दुआरु ॥
नामि रते त्रिभवण सोझी होइ ॥
नानक नामि रते सदा सुखु होइ ॥३२॥
नामि रते सिध गोसटि होइ ॥
नामि रते सदा तपु होइ ॥
नामि रते सचु करणी सारु ॥
नामि रते गुण गिआन बीचारु ॥
बिनु नावै बोलै सभु वेकारु ॥
नानक नामि रते तिन कउ जैकारु ॥३३॥
पूरे गुर ते नामु पाइआ जाइ ॥
जोग जुगति सचि रहै समाइ ॥
बारह महि जोगी भरमाए संनिआसी छिअ चारि ॥
गुर कै सबदि जो मरि जीवै सो पाए मोख दुआरु ॥
बिनु सबदै सभि दूजै लागे देखहु रिदै बीचारि ॥
नानक वडे से वडभागी जिनी सचु रखिआ उर धारि ॥३४॥
गुरमुखि रतनु लहै लिव लाइ ॥
गुरमुखि परखै रतनु सुभाइ ॥
गुरमुखि साची कार कमाइ ॥
गुरमुखि साचे मनु पतीआइ ॥
गुरमुखि अलखु लखाए तिसु भावै ॥
नानक गुरमुखि चोट न खावै ॥३५॥
गुरमुखि नामु दानु इसनानु ॥
गुरमुखि लागै सहजि धिआनु ॥
गुरमुखि पावै दरगह मानु ॥
गुरमुखि भउ भंजनु परधानु ॥
गुरमुखि करणी कार कराए ॥
नानक गुरमुखि मेलि मिलाए ॥३६॥
गुरमुखि सासत्र सिम्रिति बेद ॥
गुरमुखि पावै घटि घटि भेद ॥
गुरमुखि वैर विरोध गवावै ॥
गुरमुखि सगली गणत मिटावै ॥
गुरमुखि राम नाम रंगि राता ॥
नानक गुरमुखि खसमु पछाता ॥३७॥
बिनु गुर भरमै आवै जाइ ॥
बिनु गुर घाल न पवई थाइ ॥
बिनु गुर मनूआ अति डोलाइ ॥
बिनु गुर त्रिपति नही बिखु खाइ ॥
बिनु गुर बिसीअरु डसै मरि वाट ॥
नानक गुर बिनु घाटे घाट ॥३८॥
जिसु गुरु मिलै तिसु पारि उतारै ॥
अवगण मेटै गुणि निसतारै ॥
मुकति महा सुख गुर सबदु बीचारि ॥
गुरमुखि कदे न आवै हारि ॥
तनु हटड़ी इहु मनु वणजारा ॥
नानक सहजे सचु वापारा ॥३९॥
गुरमुखि बांधिओ सेतु बिधातै ॥
लंका लूटी दैत संतापै ॥
रामचंदि मारिओ अहि रावणु ॥
भेदु बभीखण गुरमुखि परचाइणु ॥
गुरमुखि साइरि पाहण तारे ॥
गुरमुखि कोटि तेतीस उधारे ॥४०॥
गुरमुखि चूकै आवण जाणु ॥
गुरमुखि दरगह पावै माणु ॥
गुरमुखि खोटे खरे पछाणु ॥
गुरमुखि लागै सहजि धिआनु ॥
गुरमुखि दरगह सिफति समाइ ॥
नानक गुरमुखि बंधु न पाइ ॥४१॥
गुरमुखि नामु निरंजन पाए ॥
गुरमुखि हउमै सबदि जलाए ॥
गुरमुखि साचे के गुण गाए ॥
गुरमुखि साचै रहै समाए ॥
गुरमुखि साचि नामि पति ऊतम होइ ॥
नानक गुरमुखि सगल भवण की सोझी होइ ॥४२॥
कवण मूलु कवण मति वेला ॥
तेरा कवणु गुरू जिस का तू चेला ॥
कवण कथा ले रहहु निराले ॥
बोलै नानकु सुणहु तुम बाले ॥
एसु कथा का देइ बीचारु ॥
भवजलु सबदि लंघावणहारु ॥४३॥
पवन अर्मभु सतिगुर मति वेला ॥
सबदु गुरू सुरति धुनि चेला ॥
अकथ कथा ले रहउ निराला ॥
नानक जुगि जुगि गुर गोपाला ॥
एकु सबदु जितु कथा वीचारी ॥
गुरमुखि हउमै अगनि निवारी ॥४४॥
मैण के दंत किउ खाईऐ सारु ॥
जितु गरबु जाइ सु कवणु आहारु ॥
हिवै का घरु मंदरु अगनि पिराहनु ॥
कवन गुफा जितु रहै अवाहनु ॥
इत उत किस कउ जाणि समावै ॥
कवन धिआनु मनु मनहि समावै ॥४५॥
हउ हउ मै मै विचहु खोवै ॥
दूजा मेटै एको होवै ॥
जगु करड़ा मनमुखु गावारु ॥
सबदु कमाईऐ खाईऐ सारु ॥
अंतरि बाहरि एको जाणै ॥
नानक अगनि मरै सतिगुर कै भाणै ॥४६॥
सच भै राता गरबु निवारै ॥
एको जाता सबदु वीचारै ॥
सबदु वसै सचु अंतरि हीआ ॥
तनु मनु सीतलु रंगि रंगीआ ॥
कामु क्रोधु बिखु अगनि निवारे ॥
नानक नदरी नदरि पिआरे ॥४७॥
कवन मुखि चंदु हिवै घरु छाइआ ॥
कवन मुखि सूरजु तपै तपाइआ ॥
कवन मुखि कालु जोहत नित रहै ॥
कवन बुधि गुरमुखि पति रहै ॥
कवनु जोधु जो कालु संघारै ॥
बोलै बाणी नानकु बीचारै ॥४८॥
सबदु भाखत ससि जोति अपारा ॥
ससि घरि सूरु वसै मिटै अंधिआरा ॥
सुखु दुखु सम करि नामु अधारा ॥
आपे पारि उतारणहारा ॥
गुर परचै मनु साचि समाइ ॥
प्रणवति नानकु कालु न खाइ ॥४९॥
नाम ततु सभ ही सिरि जापै ॥
बिनु नावै दुखु कालु संतापै ॥
ततो ततु मिलै मनु मानै ॥
दूजा जाइ इकतु घरि आनै ॥
बोलै पवना गगनु गरजै ॥
नानक निहचलु मिलणु सहजै ॥५०॥
अंतरि सुंनं बाहरि सुंनं त्रिभवण सुंन मसुंनं ॥
चउथे सुंनै जो नरु जाणै ता कउ पापु न पुंनं ॥
घटि घटि सुंन का जाणै भेउ ॥
आदि पुरखु निरंजन देउ ॥
जो जनु नाम निरंजन राता ॥
नानक सोई पुरखु बिधाता ॥५१॥
सुंनो सुंनु कहै सभु कोई ॥
अनहत सुंनु कहा ते होई ॥
अनहत सुंनि रते से कैसे ॥
जिस ते उपजे तिस ही जैसे ॥
ओइ जनमि न मरहि न आवहि जाहि ॥
नानक गुरमुखि मनु समझाहि ॥५२॥
नउ सर सुभर दसवै पूरे ॥
तह अनहत सुंन वजावहि तूरे ॥
साचै राचे देखि हजूरे ॥
घटि घटि साचु रहिआ भरपूरे ॥
गुपती बाणी परगटु होइ ॥
नानक परखि लए सचु सोइ ॥५३॥
सहज भाइ मिलीऐ सुखु होवै ॥
गुरमुखि जागै नीद न सोवै ॥
सुंन सबदु अपर्मपरि धारै ॥
कहते मुकतु सबदि निसतारै ॥
गुर की दीखिआ से सचि राते ॥
नानक आपु गवाइ मिलण नही भ्राते ॥५४॥
कुबुधि चवावै सो कितु ठाइ ॥
किउ ततु न बूझै चोटा खाइ ॥
जम दरि बाधे कोइ न राखै ॥
बिनु सबदै नाही पति साखै ॥
किउ करि बूझै पावै पारु ॥
नानक मनमुखि न बुझै गवारु ॥५५॥
कुबुधि मिटै गुर सबदु बीचारि ॥
सतिगुरु भेटै मोख दुआर ॥
ततु न चीनै मनमुखु जलि जाइ ॥
दुरमति विछुड़ि चोटा खाइ ॥
मानै हुकमु सभे गुण गिआन ॥
नानक दरगह पावै मानु ॥५६॥
साचु वखरु धनु पलै होइ ॥
आपि तरै तारे भी सोइ ॥
सहजि रता बूझै पति होइ ॥
ता की कीमति करै न कोइ ॥
जह देखा तह रहिआ समाइ ॥
नानक पारि परै सच भाइ ॥५७॥
सु सबद का कहा वासु कथीअले जितु तरीऐ भवजलु संसारो ॥
त्रै सत अंगुल वाई कहीऐ तिसु कहु कवनु अधारो ॥
बोलै खेलै असथिरु होवै किउ करि अलखु लखाए ॥
सुणि सुआमी सचु नानकु प्रणवै अपणे मन समझाए ॥
गुरमुखि सबदे सचि लिव लागै करि नदरी मेलि मिलाए ॥
आपे दाना आपे बीना पूरै भागि समाए ॥५८॥
सु सबद कउ निरंतरि वासु अलखं जह देखा तह सोई ॥
पवन का वासा सुंन निवासा अकल कला धर सोई ॥
नदरि करे सबदु घट महि वसै विचहु भरमु गवाए ॥
तनु मनु निरमलु निरमल बाणी नामो मंनि वसाए ॥
सबदि गुरू भवसागरु तरीऐ इत उत एको जाणै ॥
चिहनु वरनु नही छाइआ माइआ नानक सबदु पछाणै ॥५९॥
त्रै सत अंगुल वाई अउधू सुंन सचु आहारो ॥
गुरमुखि बोलै ततु बिरोलै चीनै अलख अपारो ॥
त्रै गुण मेटै सबदु वसाए ता मनि चूकै अहंकारो ॥
अंतरि बाहरि एको जाणै ता हरि नामि लगै पिआरो ॥
सुखमना इड़ा पिंगुला बूझै जा आपे अलखु लखाए ॥
नानक तिहु ते ऊपरि साचा सतिगुर सबदि समाए ॥६०॥
मन का जीउ पवनु कथीअले पवनु कहा रसु खाई ॥
गिआन की मुद्रा कवन अउधू सिध की कवन कमाई ॥
बिनु सबदै रसु न आवै अउधू हउमै पिआस न जाई ॥
सबदि रते अम्रित रसु पाइआ साचे रहे अघाई ॥
कवन बुधि जितु असथिरु रहीऐ कितु भोजनि त्रिपतासै ॥
नानक दुखु सुखु सम करि जापै सतिगुर ते कालु न ग्रासै ॥६१॥
रंगि न राता रसि नही माता ॥
बिनु गुर सबदै जलि बलि ताता ॥
बिंदु न राखिआ सबदु न भाखिआ ॥
पवनु न साधिआ सचु न अराधिआ ॥
अकथ कथा ले सम करि रहै ॥
तउ नानक आतम राम कउ लहै ॥६२॥
गुर परसादी रंगे राता ॥
अम्रितु पीआ साचे माता ॥
गुर वीचारी अगनि निवारी ॥
अपिउ पीओ आतम सुखु धारी ॥
सचु अराधिआ गुरमुखि तरु तारी ॥
नानक बूझै को वीचारी ॥६३॥
इहु मनु मैगलु कहा बसीअले कहा बसै इहु पवना ॥
कहा बसै सु सबदु अउधू ता कउ चूकै मन का भवना ॥
नदरि करे ता सतिगुरु मेले ता निज घरि वासा इहु मनु पाए ॥
आपै आपु खाइ ता निरमलु होवै धावतु वरजि रहाए ॥
किउ मूलु पछाणै आतमु जाणै किउ ससि घरि सूरु समावै ॥
गुरमुखि हउमै विचहु खोवै तउ नानक सहजि समावै ॥६४॥
इहु मनु निहचलु हिरदै वसीअले गुरमुखि मूलु पछाणि रहै ॥
नाभि पवनु घरि आसणि बैसै गुरमुखि खोजत ततु लहै ॥
सु सबदु निरंतरि निज घरि आछै त्रिभवण जोति सु सबदि लहै ॥
खावै दूख भूख साचे की साचे ही त्रिपतासि रहै ॥
अनहद बाणी गुरमुखि जाणी बिरलो को अरथावै ॥
नानकु आखै सचु सुभाखै सचि रपै रंगु कबहू न जावै ॥६५॥
जा इहु हिरदा देह न होती तउ मनु कैठै रहता ॥
नाभि कमल असथ्मभु न होतो ता पवनु कवन घरि सहता ॥
रूपु न होतो रेख न काई ता सबदि कहा लिव लाई ॥
रकतु बिंदु की मड़ी न होती मिति कीमति नही पाई ॥
वरनु भेखु असरूपु न जापी किउ करि जापसि साचा ॥
नानक नामि रते बैरागी इब तब साचो साचा ॥६६॥
हिरदा देह न होती अउधू तउ मनु सुंनि रहै बैरागी ॥
नाभि कमलु असथ्मभु न होतो ता निज घरि बसतउ पवनु अनरागी ॥
रूपु न रेखिआ जाति न होती तउ अकुलीणि रहतउ सबदु सु सारु ॥
गउनु गगनु जब तबहि न होतउ त्रिभवण जोति आपे निरंकारु ॥
वरनु भेखु असरूपु सु एको एको सबदु विडाणी ॥
साच बिना सूचा को नाही नानक अकथ कहाणी ॥६७॥
कितु कितु बिधि जगु उपजै पुरखा कितु कितु दुखि बिनसि जाई ॥
हउमै विचि जगु उपजै पुरखा नामि विसरिऐ दुखु पाई ॥
गुरमुखि होवै सु गिआनु ततु बीचारै हउमै सबदि जलाए ॥
तनु मनु निरमलु निरमल बाणी साचै रहै समाए ॥
नामे नामि रहै बैरागी साचु रखिआ उरि धारे ॥
नानक बिनु नावै जोगु कदे न होवै देखहु रिदै बीचारे ॥६८॥
गुरमुखि साचु सबदु बीचारै कोइ ॥
गुरमुखि सचु बाणी परगटु होइ ॥
गुरमुखि मनु भीजै विरला बूझै कोइ ॥
गुरमुखि निज घरि वासा होइ ॥
गुरमुखि जोगी जुगति पछाणै ॥
गुरमुखि नानक एको जाणै ॥६९॥
बिनु सतिगुर सेवे जोगु न होई ॥
बिनु सतिगुर भेटे मुकति न कोई ॥
बिनु सतिगुर भेटे नामु पाइआ न जाइ ॥
बिनु सतिगुर भेटे महा दुखु पाइ ॥
बिनु सतिगुर भेटे महा गरबि गुबारि ॥
नानक बिनु गुर मुआ जनमु हारि ॥७०॥
गुरमुखि मनु जीता हउमै मारि ॥
गुरमुखि साचु रखिआ उर धारि ॥
गुरमुखि जगु जीता जमकालु मारि बिदारि ॥
गुरमुखि दरगह न आवै हारि ॥
गुरमुखि मेलि मिलाए सो जाणै ॥
नानक गुरमुखि सबदि पछाणै ॥७१॥
सबदै का निबेड़ा सुणि तू अउधू बिनु नावै जोगु न होई ॥
नामे राते अनदिनु माते नामै ते सुखु होई ॥
नामै ही ते सभु परगटु होवै नामे सोझी पाई ॥
बिनु नावै भेख करहि बहुतेरे सचै आपि खुआई ॥
सतिगुर ते नामु पाईऐ अउधू जोग जुगति ता होई ॥
करि बीचारु मनि देखहु नानक बिनु नावै मुकति न होई ॥७२॥
तेरी गति मिति तूहै जाणहि किआ को आखि वखाणै ॥
तू आपे गुपता आपे परगटु आपे सभि रंग माणै ॥
साधिक सिध गुरू बहु चेले खोजत फिरहि फुरमाणै ॥
मागहि नामु पाइ इह भिखिआ तेरे दरसन कउ कुरबाणै ॥
अबिनासी प्रभि खेलु रचाइआ गुरमुखि सोझी होई ॥
नानक सभि जुग आपे वरतै दूजा अवरु न कोई ॥७३॥१
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