Siddh Gosht 

सिध गोसटि महला 1(Siddh Gosht)

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Siddh Gosht

रामकली महला १ सिध गोसटि

ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

सिध सभा करि आसणि बैठे संत सभा जैकारो ॥ 

तिसु आगै रहरासि हमारी साचा अपर अपारो ॥ 

मसतकु काटि धरी तिसु आगै तनु मनु आगै देउ ॥ 

नानक संतु मिलै सचु पाईऐ सहज भाइ जसु लेउ ॥१॥


किआ भवीऐ सचि सूचा होइ ॥ 

साच सबद बिनु मुकति न कोइ ॥१॥ रहाउ ॥


कवन तुमे किआ नाउ तुमारा कउनु मारगु कउनु सुआओ ॥ 

साचु कहउ अरदासि हमारी हउ संत जना बलि जाओ ॥ 

कह बैसहु कह रहीऐ बाले कह आवहु कह जाहो ॥ 

नानकु बोलै सुणि बैरागी किआ तुमारा राहो ॥२॥


घटि घटि बैसि निरंतरि रहीऐ चालहि सतिगुर भाए ॥ 

सहजे आए हुकमि सिधाए नानक सदा रजाए ॥ 

आसणि बैसणि थिरु नाराइणु ऐसी गुरमति पाए ॥ 

गुरमुखि बूझै आपु पछाणै सचे सचि समाए ॥३॥


दुनीआ सागरु दुतरु कहीऐ किउ करि पाईऐ पारो ॥ 

चरपटु बोलै अउधू नानक देहु सचा बीचारो ॥ 

आपे आखै आपे समझै तिसु किआ उतरु दीजै ॥ 

साचु कहहु तुम पारगरामी तुझु किआ बैसणु दीजै ॥४॥


जैसे जल महि कमलु निरालमु मुरगाई नै साणे ॥ 

सुरति सबदि भव सागरु तरीऐ नानक नामु वखाणे ॥ 

रहहि इकांति एको मनि वसिआ आसा माहि निरासो ॥ 

अगमु अगोचरु देखि दिखाए नानकु ता का दासो ॥५॥


सुणि सुआमी अरदासि हमारी पूछउ साचु बीचारो ॥ 

रोसु न कीजै उतरु दीजै किउ पाईऐ गुर दुआरो ॥ 

इहु मनु चलतउ सच घरि बैसै नानक नामु अधारो ॥ 

आपे मेलि मिलाए करता लागै साचि पिआरो ॥६॥


हाटी बाटी रहहि निराले रूखि बिरखि उदिआने ॥ 

कंद मूलु अहारो खाईऐ अउधू बोलै गिआने ॥ 

तीरथि नाईऐ सुखु फलु पाईऐ मैलु न लागै काई ॥ 

गोरख पूतु लोहारीपा बोलै जोग जुगति बिधि साई ॥७॥


हाटी बाटी नीद न आवै पर घरि चितु न डोलाई ॥ 

बिनु नावै मनु टेक न टिकई नानक भूख न जाई ॥ 

हाटु पटणु घरु गुरू दिखाइआ सहजे सचु वापारो ॥ 

खंडित निद्रा अलप अहारं नानक ततु बीचारो ॥८॥


दरसनु भेख करहु जोगिंद्रा मुंद्रा झोली खिंथा ॥ 

बारह अंतरि एकु सरेवहु खटु दरसन इक पंथा ॥ 

इन बिधि मनु समझाईऐ पुरखा बाहुड़ि चोट न खाईऐ ॥ 

नानकु बोलै गुरमुखि बूझै जोग जुगति इव पाईऐ ॥९॥


अंतरि सबदु निरंतरि मुद्रा हउमै ममता दूरि करी ॥ 

कामु क्रोधु अहंकारु निवारै गुर कै सबदि सु समझ परी ॥ 

खिंथा झोली भरिपुरि रहिआ नानक तारै एकु हरी ॥ 

साचा साहिबु साची नाई परखै गुर की बात खरी ॥१०॥


ऊंधउ खपरु पंच भू टोपी ॥ 

कांइआ कड़ासणु मनु जागोटी ॥ 

सतु संतोखु संजमु है नालि ॥ 

नानक गुरमुखि नामु समालि ॥११॥


कवनु सु गुपता कवनु सु मुकता ॥ 

कवनु सु अंतरि बाहरि जुगता ॥ 

कवनु सु आवै कवनु सु जाइ ॥ 

कवनु सु त्रिभवणि रहिआ समाइ ॥१२॥


घटि घटि गुपता गुरमुखि मुकता ॥ 

अंतरि बाहरि सबदि सु जुगता ॥ 

मनमुखि बिनसै आवै जाइ ॥ 

नानक गुरमुखि साचि समाइ ॥१३॥


किउ करि बाधा सरपनि खाधा ॥ 

किउ करि खोइआ किउ करि लाधा ॥ 

किउ करि निरमलु किउ करि अंधिआरा ॥ 

इहु ततु बीचारै सु गुरू हमारा ॥१४॥


दुरमति बाधा सरपनि खाधा ॥ 

मनमुखि खोइआ गुरमुखि लाधा ॥ 

सतिगुरु मिलै अंधेरा जाइ ॥ 

नानक हउमै मेटि समाइ ॥१५॥


सुंन निरंतरि दीजै बंधु ॥ 

उडै न हंसा पड़ै न कंधु ॥ 

सहज गुफा घरु जाणै साचा ॥ 

नानक साचे भावै साचा ॥१६॥


किसु कारणि ग्रिहु तजिओ उदासी ॥ 

किसु कारणि इहु भेखु निवासी ॥ 

किसु वखर के तुम वणजारे ॥ 

किउ करि साथु लंघावहु पारे ॥१७॥


गुरमुखि खोजत भए उदासी ॥ 

दरसन कै ताई भेख निवासी ॥ 

साच वखर के हम वणजारे ॥ 

नानक गुरमुखि उतरसि पारे ॥१८॥


कितु बिधि पुरखा जनमु वटाइआ ॥ 

काहे कउ तुझु इहु मनु लाइआ ॥ 

कितु बिधि आसा मनसा खाई ॥ 

कितु बिधि जोति निरंतरि पाई ॥ 

बिनु दंता किउ खाईऐ सारु ॥ 

नानक साचा करहु बीचारु ॥१९॥


सतिगुर कै जनमे गवनु मिटाइआ ॥ 

अनहति राते इहु मनु लाइआ ॥ 

मनसा आसा सबदि जलाई ॥ 

गुरमुखि जोति निरंतरि पाई ॥ 

त्रै गुण मेटे खाईऐ सारु ॥ 

नानक तारे तारणहारु ॥२०॥


आदि कउ कवनु बीचारु कथीअले सुंन कहा घर वासो ॥ 

गिआन की मुद्रा कवन कथीअले घटि घटि कवन निवासो ॥ 

काल का ठीगा किउ जलाईअले किउ निरभउ घरि जाईऐ ॥ 

सहज संतोख का आसणु जाणै किउ छेदे बैराईऐ ॥ 

गुर कै सबदि हउमै बिखु मारै ता निज घरि होवै वासो ॥ 

जिनि रचि रचिआ तिसु सबदि पछाणै नानकु ता का दासो ॥२१॥


कहा ते आवै कहा इहु जावै कहा इहु रहै समाई ॥ 

एसु सबद कउ जो अरथावै तिसु गुर तिलु न तमाई ॥ 

किउ ततै अविगतै पावै गुरमुखि लगै पिआरो ॥ 

आपे सुरता आपे करता कहु नानक बीचारो ॥ 

हुकमे आवै हुकमे जावै हुकमे रहै समाई ॥ 

पूरे गुर ते साचु कमावै गति मिति सबदे पाई ॥२२॥


आदि कउ बिसमादु बीचारु कथीअले सुंन निरंतरि वासु लीआ ॥ 

अकलपत मुद्रा गुर गिआनु बीचारीअले घटि घटि साचा सरब जीआ ॥ 

गुर बचनी अविगति समाईऐ ततु निरंजनु सहजि लहै ॥ 

नानक दूजी कार न करणी सेवै सिखु सु खोजि लहै ॥ 

हुकमु बिसमादु हुकमि पछाणै जीअ जुगति सचु जाणै सोई ॥ 

आपु मेटि निरालमु होवै अंतरि साचु जोगी कहीऐ सोई ॥२३॥


अविगतो निरमाइलु उपजे निरगुण ते सरगुणु थीआ ॥ 

सतिगुर परचै परम पदु पाईऐ साचै सबदि समाइ लीआ ॥ 

एके कउ सचु एका जाणै हउमै दूजा दूरि कीआ ॥ 

सो जोगी गुर सबदु पछाणै अंतरि कमलु प्रगासु थीआ ॥ 

जीवतु मरै ता सभु किछु सूझै अंतरि जाणै सरब दइआ ॥ 

नानक ता कउ मिलै वडाई आपु पछाणै सरब जीआ ॥२४॥


साचौ उपजै साचि समावै साचे सूचे एक मइआ ॥ 

झूठे आवहि ठवर न पावहि दूजै आवा गउणु भइआ ॥ 

आवा गउणु मिटै गुर सबदी आपे परखै बखसि लइआ ॥ 

एका बेदन दूजै बिआपी नामु रसाइणु वीसरिआ ॥ 

सो बूझै जिसु आपि बुझाए गुर कै सबदि सु मुकतु भइआ ॥ 

नानक तारे तारणहारा हउमै दूजा परहरिआ ॥२५॥


मनमुखि भूलै जम की काणि ॥ 

पर घरु जोहै हाणे हाणि ॥ 

मनमुखि भरमि भवै बेबाणि ॥ 

वेमारगि मूसै मंत्रि मसाणि ॥ 

सबदु न चीनै लवै कुबाणि ॥ 

नानक साचि रते सुखु जाणि ॥२६॥


गुरमुखि साचे का भउ पावै ॥ 

गुरमुखि बाणी अघड़ु घड़ावै ॥ 

गुरमुखि निरमल हरि गुण गावै ॥ 

गुरमुखि पवित्रु परम पदु पावै ॥ 

गुरमुखि रोमि रोमि हरि धिआवै ॥ 

नानक गुरमुखि साचि समावै ॥२७॥


गुरमुखि परचै बेद बीचारी ॥ 

गुरमुखि परचै तरीऐ तारी ॥ 

गुरमुखि परचै सु सबदि गिआनी ॥ 

गुरमुखि परचै अंतर बिधि जानी ॥ 

गुरमुखि पाईऐ अलख अपारु ॥ 

नानक गुरमुखि मुकति दुआरु ॥२८॥


गुरमुखि अकथु कथै बीचारि ॥ 

गुरमुखि निबहै सपरवारि ॥ 

गुरमुखि जपीऐ अंतरि पिआरि ॥ 

गुरमुखि पाईऐ सबदि अचारि ॥ 

सबदि भेदि जाणै जाणाई ॥ 

नानक हउमै जालि समाई ॥२९॥


गुरमुखि धरती साचै साजी ॥ 

तिस महि ओपति खपति सु बाजी ॥ 

गुर कै सबदि रपै रंगु लाइ ॥ 

साचि रतउ पति सिउ घरि जाइ ॥ 

साच सबद बिनु पति नही पावै ॥ 

नानक बिनु नावै किउ साचि समावै ॥३०॥


गुरमुखि असट सिधी सभि बुधी ॥ 

गुरमुखि भवजलु तरीऐ सच सुधी ॥ 

गुरमुखि सर अपसर बिधि जाणै ॥ 

गुरमुखि परविरति नरविरति पछाणै ॥ 

गुरमुखि तारे पारि उतारे ॥ 

नानक गुरमुखि सबदि निसतारे ॥३१॥


नामे राते हउमै जाइ ॥ 

नामि रते सचि रहे समाइ ॥ 

नामि रते जोग जुगति बीचारु ॥ 

नामि रते पावहि मोख दुआरु ॥ 

नामि रते त्रिभवण सोझी होइ ॥ 

नानक नामि रते सदा सुखु होइ ॥३२॥


नामि रते सिध गोसटि होइ ॥ 

नामि रते सदा तपु होइ ॥ 

नामि रते सचु करणी सारु ॥ 

नामि रते गुण गिआन बीचारु ॥ 

बिनु नावै बोलै सभु वेकारु ॥ 

नानक नामि रते तिन कउ जैकारु ॥३३॥


पूरे गुर ते नामु पाइआ जाइ ॥ 

जोग जुगति सचि रहै समाइ ॥ 

बारह महि जोगी भरमाए संनिआसी छिअ चारि ॥ 

गुर कै सबदि जो मरि जीवै सो पाए मोख दुआरु ॥ 

बिनु सबदै सभि दूजै लागे देखहु रिदै बीचारि ॥ 

नानक वडे से वडभागी जिनी सचु रखिआ उर धारि ॥३४॥


गुरमुखि रतनु लहै लिव लाइ ॥ 

गुरमुखि परखै रतनु सुभाइ ॥ 

गुरमुखि साची कार कमाइ ॥ 

गुरमुखि साचे मनु पतीआइ ॥ 

गुरमुखि अलखु लखाए तिसु भावै ॥ 

नानक गुरमुखि चोट न खावै ॥३५॥


गुरमुखि नामु दानु इसनानु ॥ 

गुरमुखि लागै सहजि धिआनु ॥ 

गुरमुखि पावै दरगह मानु ॥ 

गुरमुखि भउ भंजनु परधानु ॥ 

गुरमुखि करणी कार कराए ॥ 

नानक गुरमुखि मेलि मिलाए ॥३६॥


गुरमुखि सासत्र सिम्रिति बेद ॥ 

गुरमुखि पावै घटि घटि भेद ॥ 

गुरमुखि वैर विरोध गवावै ॥ 

गुरमुखि सगली गणत मिटावै ॥ 

गुरमुखि राम नाम रंगि राता ॥ 

नानक गुरमुखि खसमु पछाता ॥३७॥


बिनु गुर भरमै आवै जाइ ॥ 

बिनु गुर घाल न पवई थाइ ॥ 

बिनु गुर मनूआ अति डोलाइ ॥ 

बिनु गुर त्रिपति नही बिखु खाइ ॥ 

बिनु गुर बिसीअरु डसै मरि वाट ॥ 

नानक गुर बिनु घाटे घाट ॥३८॥


जिसु गुरु मिलै तिसु पारि उतारै ॥ 

अवगण मेटै गुणि निसतारै ॥ 

मुकति महा सुख गुर सबदु बीचारि ॥ 

गुरमुखि कदे न आवै हारि ॥ 

तनु हटड़ी इहु मनु वणजारा ॥ 

नानक सहजे सचु वापारा ॥३९॥


गुरमुखि बांधिओ सेतु बिधातै ॥ 

लंका लूटी दैत संतापै ॥ 

रामचंदि मारिओ अहि रावणु ॥ 

भेदु बभीखण गुरमुखि परचाइणु ॥ 

गुरमुखि साइरि पाहण तारे ॥ 

गुरमुखि कोटि तेतीस उधारे ॥४०॥


गुरमुखि चूकै आवण जाणु ॥ 

गुरमुखि दरगह पावै माणु ॥ 

गुरमुखि खोटे खरे पछाणु ॥ 

गुरमुखि लागै सहजि धिआनु ॥ 

गुरमुखि दरगह सिफति समाइ ॥ 

नानक गुरमुखि बंधु न पाइ ॥४१॥


गुरमुखि नामु निरंजन पाए ॥ 

गुरमुखि हउमै सबदि जलाए ॥ 

गुरमुखि साचे के गुण गाए ॥ 

गुरमुखि साचै रहै समाए ॥ 

गुरमुखि साचि नामि पति ऊतम होइ ॥ 

नानक गुरमुखि सगल भवण की सोझी होइ ॥४२॥


कवण मूलु कवण मति वेला ॥ 

तेरा कवणु गुरू जिस का तू चेला ॥ 

कवण कथा ले रहहु निराले ॥ 

बोलै नानकु सुणहु तुम बाले ॥ 

एसु कथा का देइ बीचारु ॥ 

भवजलु सबदि लंघावणहारु ॥४३॥


पवन अर्मभु सतिगुर मति वेला ॥ 

सबदु गुरू सुरति धुनि चेला ॥ 

अकथ कथा ले रहउ निराला ॥ 

नानक जुगि जुगि गुर गोपाला ॥ 

एकु सबदु जितु कथा वीचारी ॥ 

गुरमुखि हउमै अगनि निवारी ॥४४॥


मैण के दंत किउ खाईऐ सारु ॥ 

जितु गरबु जाइ सु कवणु आहारु ॥ 

हिवै का घरु मंदरु अगनि पिराहनु ॥ 

कवन गुफा जितु रहै अवाहनु ॥ 

इत उत किस कउ जाणि समावै ॥ 

कवन धिआनु मनु मनहि समावै ॥४५॥


हउ हउ मै मै विचहु खोवै ॥ 

दूजा मेटै एको होवै ॥ 

जगु करड़ा मनमुखु गावारु ॥ 

सबदु कमाईऐ खाईऐ सारु ॥ 

अंतरि बाहरि एको जाणै ॥ 

नानक अगनि मरै सतिगुर कै भाणै ॥४६॥


सच भै राता गरबु निवारै ॥ 

एको जाता सबदु वीचारै ॥ 

सबदु वसै सचु अंतरि हीआ ॥ 

तनु मनु सीतलु रंगि रंगीआ ॥ 

कामु क्रोधु बिखु अगनि निवारे ॥ 

नानक नदरी नदरि पिआरे ॥४७॥


कवन मुखि चंदु हिवै घरु छाइआ ॥ 

कवन मुखि सूरजु तपै तपाइआ ॥ 

कवन मुखि कालु जोहत नित रहै ॥ 

कवन बुधि गुरमुखि पति रहै ॥ 

कवनु जोधु जो कालु संघारै ॥ 

बोलै बाणी नानकु बीचारै ॥४८॥


सबदु भाखत ससि जोति अपारा ॥ 

ससि घरि सूरु वसै मिटै अंधिआरा ॥ 

सुखु दुखु सम करि नामु अधारा ॥ 

आपे पारि उतारणहारा ॥ 

गुर परचै मनु साचि समाइ ॥ 

प्रणवति नानकु कालु न खाइ ॥४९॥


नाम ततु सभ ही सिरि जापै ॥ 

बिनु नावै दुखु कालु संतापै ॥ 

ततो ततु मिलै मनु मानै ॥ 

दूजा जाइ इकतु घरि आनै ॥ 

बोलै पवना गगनु गरजै ॥ 

नानक निहचलु मिलणु सहजै ॥५०॥


अंतरि सुंनं बाहरि सुंनं त्रिभवण सुंन मसुंनं ॥ 

चउथे सुंनै जो नरु जाणै ता कउ पापु न पुंनं ॥ 

घटि घटि सुंन का जाणै भेउ ॥ 

आदि पुरखु निरंजन देउ ॥ 

जो जनु नाम निरंजन राता ॥ 

नानक सोई पुरखु बिधाता ॥५१॥


सुंनो सुंनु कहै सभु कोई ॥ 

अनहत सुंनु कहा ते होई ॥ 

अनहत सुंनि रते से कैसे ॥ 

जिस ते उपजे तिस ही जैसे ॥ 

ओइ जनमि न मरहि न आवहि जाहि ॥ 

नानक गुरमुखि मनु समझाहि ॥५२॥


नउ सर सुभर दसवै पूरे ॥ 

तह अनहत सुंन वजावहि तूरे ॥ 

साचै राचे देखि हजूरे ॥ 

घटि घटि साचु रहिआ भरपूरे ॥ 

गुपती बाणी परगटु होइ ॥ 

नानक परखि लए सचु सोइ ॥५३॥


सहज भाइ मिलीऐ सुखु होवै ॥ 

गुरमुखि जागै नीद न सोवै ॥ 

सुंन सबदु अपर्मपरि धारै ॥ 

कहते मुकतु सबदि निसतारै ॥ 

गुर की दीखिआ से सचि राते ॥ 

नानक आपु गवाइ मिलण नही भ्राते ॥५४॥


कुबुधि चवावै सो कितु ठाइ ॥ 

किउ ततु न बूझै चोटा खाइ ॥ 

जम दरि बाधे कोइ न राखै ॥ 

बिनु सबदै नाही पति साखै ॥ 

किउ करि बूझै पावै पारु ॥ 

नानक मनमुखि न बुझै गवारु ॥५५॥


कुबुधि मिटै गुर सबदु बीचारि ॥ 

सतिगुरु भेटै मोख दुआर ॥ 

ततु न चीनै मनमुखु जलि जाइ ॥ 

दुरमति विछुड़ि चोटा खाइ ॥ 

मानै हुकमु सभे गुण गिआन ॥ 

नानक दरगह पावै मानु ॥५६॥


साचु वखरु धनु पलै होइ ॥ 

आपि तरै तारे भी सोइ ॥ 

सहजि रता बूझै पति होइ ॥ 

ता की कीमति करै न कोइ ॥ 

जह देखा तह रहिआ समाइ ॥ 

नानक पारि परै सच भाइ ॥५७॥


सु सबद का कहा वासु कथीअले जितु तरीऐ भवजलु संसारो ॥ 

त्रै सत अंगुल वाई कहीऐ तिसु कहु कवनु अधारो ॥ 

बोलै खेलै असथिरु होवै किउ करि अलखु लखाए ॥ 

सुणि सुआमी सचु नानकु प्रणवै अपणे मन समझाए ॥ 

गुरमुखि सबदे सचि लिव लागै करि नदरी मेलि मिलाए ॥ 

आपे दाना आपे बीना पूरै भागि समाए ॥५८॥


सु सबद कउ निरंतरि वासु अलखं जह देखा तह सोई ॥ 

पवन का वासा सुंन निवासा अकल कला धर सोई ॥ 

नदरि करे सबदु घट महि वसै विचहु भरमु गवाए ॥ 

तनु मनु निरमलु निरमल बाणी नामो मंनि वसाए ॥ 

सबदि गुरू भवसागरु तरीऐ इत उत एको जाणै ॥ 

चिहनु वरनु नही छाइआ माइआ नानक सबदु पछाणै ॥५९॥


त्रै सत अंगुल वाई अउधू सुंन सचु आहारो ॥ 

गुरमुखि बोलै ततु बिरोलै चीनै अलख अपारो ॥ 

त्रै गुण मेटै सबदु वसाए ता मनि चूकै अहंकारो ॥ 

अंतरि बाहरि एको जाणै ता हरि नामि लगै पिआरो ॥ 

सुखमना इड़ा पिंगुला बूझै जा आपे अलखु लखाए ॥ 

नानक तिहु ते ऊपरि साचा सतिगुर सबदि समाए ॥६०॥


मन का जीउ पवनु कथीअले पवनु कहा रसु खाई ॥ 

गिआन की मुद्रा कवन अउधू सिध की कवन कमाई ॥ 

बिनु सबदै रसु न आवै अउधू हउमै पिआस न जाई ॥ 

सबदि रते अम्रित रसु पाइआ साचे रहे अघाई ॥ 

कवन बुधि जितु असथिरु रहीऐ कितु भोजनि त्रिपतासै ॥ 

नानक दुखु सुखु सम करि जापै सतिगुर ते कालु न ग्रासै ॥६१॥


रंगि न राता रसि नही माता ॥ 

बिनु गुर सबदै जलि बलि ताता ॥ 

बिंदु न राखिआ सबदु न भाखिआ ॥ 

पवनु न साधिआ सचु न अराधिआ ॥ 

अकथ कथा ले सम करि रहै ॥ 

तउ नानक आतम राम कउ लहै ॥६२॥


गुर परसादी रंगे राता ॥ 

अम्रितु पीआ साचे माता ॥ 

गुर वीचारी अगनि निवारी ॥ 

अपिउ पीओ आतम सुखु धारी ॥ 

सचु अराधिआ गुरमुखि तरु तारी ॥ 

नानक बूझै को वीचारी ॥६३॥


इहु मनु मैगलु कहा बसीअले कहा बसै इहु पवना ॥ 

कहा बसै सु सबदु अउधू ता कउ चूकै मन का भवना ॥ 

नदरि करे ता सतिगुरु मेले ता निज घरि वासा इहु मनु पाए ॥ 

आपै आपु खाइ ता निरमलु होवै धावतु वरजि रहाए ॥ 

किउ मूलु पछाणै आतमु जाणै किउ ससि घरि सूरु समावै ॥ 

गुरमुखि हउमै विचहु खोवै तउ नानक सहजि समावै ॥६४॥


इहु मनु निहचलु हिरदै वसीअले गुरमुखि मूलु पछाणि रहै ॥ 

नाभि पवनु घरि आसणि बैसै गुरमुखि खोजत ततु लहै ॥ 

सु सबदु निरंतरि निज घरि आछै त्रिभवण जोति सु सबदि लहै ॥ 

खावै दूख भूख साचे की साचे ही त्रिपतासि रहै ॥ 

अनहद बाणी गुरमुखि जाणी बिरलो को अरथावै ॥ 

नानकु आखै सचु सुभाखै सचि रपै रंगु कबहू न जावै ॥६५॥


जा इहु हिरदा देह न होती तउ मनु कैठै रहता ॥ 

नाभि कमल असथ्मभु न होतो ता पवनु कवन घरि सहता ॥ 

रूपु न होतो रेख न काई ता सबदि कहा लिव लाई ॥ 

रकतु बिंदु की मड़ी न होती मिति कीमति नही पाई ॥ 

वरनु भेखु असरूपु न जापी किउ करि जापसि साचा ॥ 

नानक नामि रते बैरागी इब तब साचो साचा ॥६६॥


हिरदा देह न होती अउधू तउ मनु सुंनि रहै बैरागी ॥ 

नाभि कमलु असथ्मभु न होतो ता निज घरि बसतउ पवनु अनरागी ॥ 

रूपु न रेखिआ जाति न होती तउ अकुलीणि रहतउ सबदु सु सारु ॥ 

गउनु गगनु जब तबहि न होतउ त्रिभवण जोति आपे निरंकारु ॥ 

वरनु भेखु असरूपु सु एको एको सबदु विडाणी ॥ 

साच बिना सूचा को नाही नानक अकथ कहाणी ॥६७॥


कितु कितु बिधि जगु उपजै पुरखा कितु कितु दुखि बिनसि जाई ॥ 

हउमै विचि जगु उपजै पुरखा नामि विसरिऐ दुखु पाई ॥ 

गुरमुखि होवै सु गिआनु ततु बीचारै हउमै सबदि जलाए ॥ 

तनु मनु निरमलु निरमल बाणी साचै रहै समाए ॥ 

नामे नामि रहै बैरागी साचु रखिआ उरि धारे ॥ 

नानक बिनु नावै जोगु कदे न होवै देखहु रिदै बीचारे ॥६८॥


गुरमुखि साचु सबदु बीचारै कोइ ॥ 

गुरमुखि सचु बाणी परगटु होइ ॥ 

गुरमुखि मनु भीजै विरला बूझै कोइ ॥ 

गुरमुखि निज घरि वासा होइ ॥ 

गुरमुखि जोगी जुगति पछाणै ॥ 

गुरमुखि नानक एको जाणै ॥६९॥


बिनु सतिगुर सेवे जोगु न होई ॥ 

बिनु सतिगुर भेटे मुकति न कोई ॥ 

बिनु सतिगुर भेटे नामु पाइआ न जाइ ॥ 

बिनु सतिगुर भेटे महा दुखु पाइ ॥ 

बिनु सतिगुर भेटे महा गरबि गुबारि ॥ 

नानक बिनु गुर मुआ जनमु हारि ॥७०॥


गुरमुखि मनु जीता हउमै मारि ॥ 

गुरमुखि साचु रखिआ उर धारि ॥ 

गुरमुखि जगु जीता जमकालु मारि बिदारि ॥ 

गुरमुखि दरगह न आवै हारि ॥ 

गुरमुखि मेलि मिलाए सो जाणै ॥ 

नानक गुरमुखि सबदि पछाणै ॥७१॥


सबदै का निबेड़ा सुणि तू अउधू बिनु नावै जोगु न होई ॥ 

नामे राते अनदिनु माते नामै ते सुखु होई ॥ 

नामै ही ते सभु परगटु होवै नामे सोझी पाई ॥ 

बिनु नावै भेख करहि बहुतेरे सचै आपि खुआई ॥ 

सतिगुर ते नामु पाईऐ अउधू जोग जुगति ता होई ॥ 

करि बीचारु मनि देखहु नानक बिनु नावै मुकति न होई ॥७२॥


तेरी गति मिति तूहै जाणहि किआ को आखि वखाणै ॥ 

तू आपे गुपता आपे परगटु आपे सभि रंग माणै ॥ 

साधिक सिध गुरू बहु चेले खोजत फिरहि फुरमाणै ॥ 

मागहि नामु पाइ इह भिखिआ तेरे दरसन कउ कुरबाणै ॥ 

अबिनासी प्रभि खेलु रचाइआ गुरमुखि सोझी होई ॥ 

नानक सभि जुग आपे वरतै दूजा अवरु न कोई ॥७३॥१

Siddh Gosht 

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