Dhumavati Utpatti Katha 

माँ धूमावती उत्पत्ति कथा (Dhumavati Utpatti Katha)

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Dhumavati Utpatti Katha

माँ धूमावती दस महाविद्या में से सातवीं देवी हैं। माता का यह रूप पुराने एवं मलिन वस्त्र धारण किये एक वृद्ध विधवा का है, उनके केश पूर्णतः अव्यवस्थित हैं।सभी महाविद्याओं के ही समान यह कोई आभूषण धारण नहीं करती हैं। देवी का यह रूप अशुभ एवं अनाकर्षक है। माँ धूमावती सदा ही भूखी-प्यासी तथा कलह उत्पन्न करने वाली सी प्रतीत होती हैं।

देवी धूमावती के स्वरूप एवं स्वाभाव की तुलना देवी अलक्ष्मी, देवी ज्येष्ठा एवं देवी निऋति से की जाती है। ये तीनों देवियाँ नकारात्मक गुणों की सूचक हैं, किन्तु वर्ष पर्यन्त विभिन्न विशेष अवसरों पर इनकी पूजा-अर्चना की जाती है।

देवी धूमावती की पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार एक बार माँ पार्वती को बहुत तेज भूख लगी हुई थी। किंतु कैलाश पर उस समय कुछ न रहने के कारण वे अपनी क्षुधा शांत करने के लिए भगवान शंकर के पास जाती हैं और उनसे भोजन की मांग करती हैं। किंतु उस समय शंकरजी अपनी समाधि में लीन होते हैं। माँ पार्वती के बार-बार निवेदन के बाद भी शंकरजी ध्यान से नहीं उठते और वे ध्यानमुद्रा में ही मग्न रहते हैं।

माँ पार्वती की भूख और तेज हो उठती है और वे भूख से इतनी व्याकुल हो जाती हैं कि खाने मे कुछ भी नहीं मिलाने की स्थिति मे श्वास खींचकर शिवजी को ही निगल जाती हैं। भगवान शिव के कंठ में विष होने के कारण माँ के शरीर से धुआं निकलने लगता है, उनका स्वरूप श्रृंगारविहीन तथा विकृत हो जाता है तथा माँ पार्वती की भूख शांत होती है।

तत्पश्चात भगवान शिव माया के द्वारा माँ पार्वती के शरीर से बाहर आते हैं और पार्वती के धूम से व्याप्त स्वरूप को देखकर कहते हैं कि अबसे आप इस वेश में भी पूजी जाएंगी। इसी कारण माँ पार्वती का नाम ‘देवी धूमावती’ पड़ा। 

माँ धूमावती की मुद्रा
माँ के इस स्वरुप की दो भुजाएं हैं जिसमे क्रमशः कम्पित हाथों में एक सूप तथा दूसरे हाथ वरदान मुद्रा मे हैं। अथवा ज्ञान प्रदायनी मुद्रा में होता है। माँ एक बिना अश्व के रथ पर सवार हैं, जिसके शीर्ष पर ध्वज एवं प्रतीक के रूप में कौआ विराजमान रहता है। समस्त रोगों एवं घनघोर दरिद्रता से मुक्ति प्राप्त करने हेतु देवी धूमावती की पूजा की जाती है।

 Dhumavati Utpatti Katha 

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