Raag Asavari Bani

राग आसावरी बाणी (Raag Asavari Bani)

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Raag Asavari Bani 

Raag Asavari Bani

रागु आसावरी घरु १६ के २ महला ४ सुधंग

ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

हउ अनदिनु हरि नामु कीरतनु करउ ॥ 

सतिगुरि मो कउ हरि नामु बताइआ हउ हरि बिनु खिनु पलु रहि न सकउ ॥१॥ रहाउ ॥


हमरै स्रवणु सिमरनु हरि कीरतनु हउ हरि बिनु रहि न सकउ हउ इकु खिनु ॥ 

जैसे हंसु सरवर बिनु रहि न सकै तैसे हरि जनु किउ रहै हरि सेवा बिनु ॥१॥


किनहूं प्रीति लाई दूजा भाउ रिद धारि किनहूं प्रीति लाई मोह अपमान ॥ 

हरि जन प्रीति लाई हरि निरबाण पद नानक सिमरत हरि हरि भगवान ॥२॥१४॥६६॥


आसावरी महला ४ ॥

माई मोरो प्रीतमु रामु बतावहु री माई ॥ 

हउ हरि बिनु खिनु पलु रहि न सकउ जैसे करहलु बेलि रीझाई ॥१॥ रहाउ ॥


हमरा मनु बैराग बिरकतु भइओ हरि दरसन मीत कै ताई ॥ 

जैसे अलि कमला बिनु रहि न सकै तैसे मोहि हरि बिनु रहनु न जाई ॥१॥


राखु सरणि जगदीसुर पिआरे मोहि सरधा पूरि हरि गुसाई ॥ 

जन नानक कै मनि अनदु होत है हरि दरसनु निमख दिखाई ॥२॥३९॥१३॥१५॥६७॥


आसावरी महला ५ ॥

मनसा एक मानि हां ॥ 

गुर सिउ नेत धिआनि हां ॥ 

द्रिड़ु संत मंत गिआनि हां ॥ 

सेवा गुर चरानि हां ॥ 

तउ मिलीऐ गुर क्रिपानि मेरे मना ॥१॥ रहाउ ॥


टूटे अन भरानि हां ॥ 

रविओ सरब थानि हां ॥ 

लहिओ जम भइआनि हां ॥ 

पाइओ पेड थानि हां ॥ 

तउ चूकी सगल कानि ॥१॥


लहनो जिसु मथानि हां ॥ 

भै पावक पारि परानि हां ॥ 

निज घरि तिसहि थानि हां ॥ 

हरि रस रसहि मानि हां ॥ 

लाथी तिस भुखानि हां ॥ 

नानक सहजि समाइओ रे मना ॥२॥२॥१५८॥


आसावरी महला ५ ॥

हरि हरि हरि गुनी हां ॥ 

जपीऐ सहज धुनी हां ॥ 

साधू रसन भनी हां ॥ 

छूटन बिधि सुनी हां ॥ 

पाईऐ वड पुनी मेरे मना ॥१॥ रहाउ ॥


खोजहि जन मुनी हां ॥ 

स्रब का प्रभ धनी हां ॥ 

दुलभ कलि दुनी हां ॥ 

दूख बिनासनी हां ॥ 

प्रभ पूरन आसनी मेरे मना ॥१॥


मन सो सेवीऐ हां ॥ 

अलख अभेवीऐ हां ॥ 

तां सिउ प्रीति करि हां ॥ 

बिनसि न जाइ मरि हां ॥ 

गुर ते जानिआ हां ॥ 

नानक मनु मानिआ मेरे मना ॥२॥३॥१५९॥


आसावरी महला ५ ॥

एका ओट गहु हां ॥ 

गुर का सबदु कहु हां ॥ 

आगिआ सति सहु हां ॥ 

मनहि निधानु लहु हां ॥ 

सुखहि समाईऐ मेरे मना ॥१॥ रहाउ ॥


जीवत जो मरै हां ॥ 

दुतरु सो तरै हां ॥ 

सभ की रेनु होइ हां ॥ 

निरभउ कहउ सोइ हां ॥ 

मिटे अंदेसिआ हां ॥ 

संत उपदेसिआ मेरे मना ॥१॥


जिसु जन नाम सुखु हां ॥ 

तिसु निकटि न कदे दुखु हां ॥ 

जो हरि हरि जसु सुने हां ॥ 

सभु को तिसु मंने हां ॥ 

सफलु सु आइआ हां ॥ 

नानक प्रभ भाइआ मेरे मना ॥२॥४॥१६०॥


आसावरी महला ५ ॥

मिलि हरि जसु गाईऐ हां ॥ 

परम पदु पाईऐ हां ॥ 

उआ रस जो बिधे हां ॥ 

ता कउ सगल सिधे हां ॥ 

अनदिनु जागिआ हां ॥ 

नानक बडभागिआ मेरे मना ॥१॥ रहाउ ॥


संत पग धोईऐ हां ॥ 

दुरमति खोईऐ हां ॥ 

दासह रेनु होइ हां ॥ 

बिआपै दुखु न कोइ हां ॥ 

भगतां सरनि परु हां ॥ 

जनमि न कदे मरु हां ॥ 

असथिरु से भए हां ॥ 

हरि हरि जिन्ह जपि लए मेरे मना ॥१॥


साजनु मीतु तूं हां ॥ 

नामु द्रिड़ाइ मूं हां ॥ 

तिसु बिनु नाहि कोइ हां ॥ 

मनहि अराधि सोइ हां ॥ 

निमख न वीसरै हां ॥ 

तिसु बिनु किउ सरै हां ॥ 

गुर कउ कुरबानु जाउ हां ॥ 

नानकु जपे नाउ मेरे मना ॥२॥५॥१६१॥


आसावरी महला ५ ॥

कारन करन तूं हां ॥ 

अवरु ना सुझै मूं हां ॥ 

करहि सु होईऐ हां ॥ 

सहजि सुखि सोईऐ हां ॥ 

धीरज मनि भए हां ॥ 

प्रभ कै दरि पए मेरे मना ॥१॥ रहाउ ॥


साधू संगमे हां ॥ 

पूरन संजमे हां ॥ 

जब ते छुटे आप हां ॥ 

तब ते मिटे ताप हां ॥ 

किरपा धारीआ हां ॥ 

पति रखु बनवारीआ मेरे मना ॥१॥


इहु सुखु जानीऐ हां ॥ 

हरि करे सु मानीऐ हां ॥ 

मंदा नाहि कोइ हां ॥ 

संत की रेन होइ हां ॥ 

आपे जिसु रखै हां ॥ 

हरि अम्रितु सो चखै मेरे मना ॥२॥


जिस का नाहि कोइ हां ॥ 

तिस का प्रभू सोइ हां ॥ 

अंतरगति बुझै हां ॥ 

सभु किछु तिसु सुझै हां ॥ 

पतित उधारि लेहु हां ॥ 

नानक अरदासि एहु मेरे मना ॥३॥६॥१६२॥


आसावरी महला ५ इकतुका ॥

ओइ परदेसीआ हां ॥ 

सुनत संदेसिआ हां ॥१॥ रहाउ ॥


जा सिउ रचि रहे हां ॥ 

सभ कउ तजि गए हां ॥ 

सुपना जिउ भए हां ॥ 

हरि नामु जिन्हि लए ॥१॥


हरि तजि अन लगे हां ॥ 

जनमहि मरि भगे हां ॥ 

हरि हरि जनि लहे हां ॥ 

जीवत से रहे हां ॥ 

जिसहि क्रिपालु होइ हां ॥ 

नानक भगतु सोइ ॥२॥७॥१६३॥२३२॥


आसावरी महला ५ घरु ३

ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

मेरे मन हरि सिउ लागी प्रीति ॥ 

साधसंगि हरि हरि जपत निरमल साची रीति ॥१॥ रहाउ ॥


दरसन की पिआस घणी चितवत अनिक प्रकार ॥ 

करहु अनुग्रहु पारब्रहम हरि किरपा धारि मुरारि ॥१॥


मनु परदेसी आइआ मिलिओ साध कै संगि ॥ 

जिसु वखर कउ चाहता सो पाइओ नामहि रंगि ॥२॥


जेते माइआ रंग रस बिनसि जाहि खिन माहि ॥ 

भगत रते तेरे नाम सिउ सुखु भुंचहि सभ ठाइ ॥३॥


सभु जगु चलतउ पेखीऐ निहचलु हरि को नाउ ॥ 

करि मित्राई साध सिउ निहचलु पावहि ठाउ ॥४॥


मीत साजन सुत बंधपा कोऊ होत न साथ ॥ 

एकु निवाहू राम नाम दीना का प्रभु नाथ ॥५॥


चरन कमल बोहिथ भए लगि सागरु तरिओ तेह ॥ 

भेटिओ पूरा सतिगुरू साचा प्रभ सिउ नेह ॥६॥


साध तेरे की जाचना विसरु न सासि गिरासि ॥ 

जो तुधु भावै सो भला तेरै भाणै कारज रासि ॥७॥


सुख सागर प्रीतम मिले उपजे महा अनंद ॥ 

कहु नानक सभ दुख मिटे प्रभ भेटे परमानंद ॥८॥१॥२॥


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