Shabad-hazare-patshahi-10

शबद (पातिसाही 10) Shabad-hazare-patshahi-10

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सबद ॥ 

ੴ सतिगुरप्रसादि ॥ 

रामकली पातसाही १० ॥ 


रे मन ऐसो कर संनिआसा ॥ 

बन से सदन सबै कर समझहु मन ही माहि उदासा ॥१॥ रहाउ ॥ 


जत की जटा जोग को मंजनु नेम के नखन बढाओ ॥ 

गिआन गुरू आतम उपदेसहु नाम बिभूत लगाओ ॥१॥ 


अलप अहार सुलप सी निंद्रा दया छिमा तन प्रीति ॥ 

सील संतोख सदा निरबाहिबो ह्वैबो तृगुण अतीत ॥२॥ 


काम क्रोध हंकार लोभ हठ मोह न मन सिउ ल्यावै ॥ 

तब ही आतम तत को दरसे परम पुरख कह पावै ॥३॥१॥ 


रामकली पातिसाही १० ॥ 


रे मन इह बिधि जोगु कमाओ ॥ 

सिंङी साचु अकपट कंठला धिआन बिभूत चड़ाओ ॥१॥ रहाउ ॥ 


ताती गहु आतम बसि कर की भिच्छा नाम अधारं ॥ 

बाजे परम तार ततु हरि को उपजै राग रसारं ॥१॥ 


उघटै तान तरंग रंगि अति गिआन गीत बंधानं ॥ 

चकि चकि रहे देव दानव मुनि छकि छकि ब्योम बिवानं ॥२॥ 


आतम उपदेस भेसु संजम को जाप सु अजपा जापै ॥ 

सदा रहै कंचन सी काया काल न कबहूँ ब्यापै ॥३॥२॥ 


रामकली पातिसाही १० ॥ 


प्रानी परम पुरख पगि लागो ॥ 

सोवत कहा मोह निंद्रा मै कबहूँ सुचित ह्वै जागो ॥१॥ रहाउ ॥ 


औरन कहा उपदेसत है पसु तोहि प्रबोध न लागो ॥ 

सिंचत कहा परे बिखियन कह कबहु बिखै रस त्यागो ॥१॥ 


केवल करम भरम से चीनहु धरम करम अनुरागो ॥ 

संग्रह करो सदा सिमरन को परम पाप तजि भागो ॥२॥ 


जा ते दूख पाप नहि भेटै काल जाल ते तागो ॥ 

जौ सुख चाहो सदा सभन कौ तौ हरि के रसि पागो ॥३॥३॥ 


रागु सोरठि पातिसाही १० ॥ 


प्रभ जू तो कह लाज हमारी ॥ 

नील कंठ नरहरि नाराइण नील बसन बनवारी ॥१॥ रहाउ ॥ 


परम पुरख परमेसर सुआमी पावन पउन अहारी ॥ 

माधव महा जोति मधु मरदन मान मुकंद मुरारी ॥१॥ 


निरबिकार निरजुर निंद्रा बिनु निरबिख नरक निवारी ॥ 

कृपा सिंध काल त्रै दरसी कुकृत प्रनासनकारी ॥२॥ 


धनुरपानि धृतमान धराधर अनबिकार असिधारी ॥ 

हौ मति मंद चरन सरनागति कर गहि लेहु उबारी ॥३॥१॥४॥ 


रागु कलिआण पातिसाही १० ॥ 


बिन करतार न किरतम मानो ॥ 

आदि अजोनि अजै अबिनासी तिह परमेसर जानो ॥१॥ रहाउ ॥ 


कहा भयो जो आन जगत मै दसक असुर हरि घाए ॥ 

अधिक प्रपंच दिखाइ सभन कह आपहि ब्रहमु कहाए ॥१॥ 


भंजन गड़्हन समरथ सदा प्रभु सो किम जाति गिनायो ॥ 

ता ते सरब काल के असि को घाइ बचाइ न आयो ॥२॥ 


कैसे तोहि तारिहै सुनि जड़ आप डुबियो भव सागर ॥ 

छुटिहो काल फास ते तब ही गहो सरनि जगतागर ॥३॥१॥५॥ 


खिआल पातिसाही १० ॥ 


मित्र पिआरे नूँ हालु मुरीदाँ दा कहणा ॥ 

तुध बिनु रोगु रजाईआँ दा ओढणु नाग निवासाँ दे रहणा ॥ 

सूल सुराही खंजरु पियाला बिंग कसाईयाँ दा सहणा ॥ 

यारड़े दा सानूँ सत्थर चंगा भट्ठ खेड़िआँ दा रहणा ॥१॥१॥६॥ 


तिलंग काफी पातिसाही १० ॥ 


केवल कालई करतार ॥ 

आदि अंत अनंत मूरति गड़्हन भंजनहार ॥१॥ रहाउ ॥ 


निंद उसतत जउन के सम सत्र मित्र न कोइ ॥ 

कउन बाट परी तिसै पथ सारथी रथ होइ ॥१॥ 


तात मात न जात जाकर पुत्र पौत्र मुकंद ॥ 

कउन काज कहाहिंगे ते आन देविक नंद ॥२॥ 


देव दैत दिसा विसा जिह कीन सरब पसार ॥ 

कउन उपमा तौन कौ मुख लेत नामु मुरार ॥३॥१॥७॥ 


राग बिलावल पातिसाही १० ॥ 


सो किम मानस रूप कहाए ॥ 

सिध समाधि साध कर हारे क्योहूँ न देखन पाए ॥१॥ रहाउ ॥ 


नारद बिआस परासर ध्रूअ से धिआवत धिआन लगाए ॥ 

बेद पुरान हारि हठ छाडिओ तदपि धिआन न आए ॥१॥ 


दानव देव पिसाच प्रेत ते नेतह नेत कहाए ॥ 

सूछम ते सूछम कर चीने बृधन बृध बताए ॥२॥ 


भूम अकास पताल सभै सजि एक अनेक सदाए ॥ 

सो नर काल फास ते बाचे जो हरि सरणि सिधाए ॥३॥१॥८॥ 


राग देवगंधारी पातिसाही १० ॥ 


इक बिन दूसर सो न चिनार ॥ 

भंजन गड़न समरथ सदा प्रभ जानत है करतार ॥१॥ रहाउ ॥ 


कहा भइओ जो अत हित चित कर बहु बिध सिला पुजाई ॥ 

प्रान थकिओ पाहन कह परसत कछु करि सिध न आई ॥१॥ 


अछत धूप दीप अरपत है पाहन कछू न खैहै ॥ 

ता मैं कहाँ सिध है रे जड़ तोहि कछू बर दैहै ॥२॥ 


जौ जीय होत तौ देत कछु तुहि कर मन बच करम बिचार ॥ 

केवल एक सरण सुआमी बिनु यौ नहि कतहि उधार ॥३॥१॥९॥ 


राग देवगंधारी पातिसाही १० ॥ 


बिनु हरि नाम न बाचन पैहै ॥ 

चौदहि लोक जाहि बस कीने ता ते कहाँ पलैहै ॥१॥ रहाउ ॥ 


राम रहीम उबार न सकहै जा कर नाम रटै है ॥ 

ब्रहमा बिसन रुद्र सूरज ससि ते बसि काल सबै है ॥१॥ 


बेद पुरान कुरान सबै मत जाकह नेत कहै है ॥ 

इंद्र फनिंद्र मुनिंद्र कलप बहु धिआवत धिआन न ऐहै ॥२॥ 


जाकर रूप रंग नहि जनियत सो किम स्याम कहै है ॥ 

छुटहो काल जाल ते तब ही ताँहि चरन लपटैहै ॥३॥१॥१०॥

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