Anand Sahib

आनंद साहिब (Anand Sahib)

Spread the love

Anand Sahib

Anand Sahib

रामकली महला ३ अनंदु

ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

अनंदु भइआ मेरी माए सतिगुरू मै पाइआ ॥ 

सतिगुरु त पाइआ सहज सेती मनि वजीआ वाधाईआ ॥ 

राग रतन परवार परीआ सबद गावण आईआ ॥ 

सबदो त गावहु हरी केरा मनि जिनी वसाइआ ॥ 

कहै नानकु अनंदु होआ सतिगुरू मै पाइआ ॥१॥


ए मन मेरिआ तू सदा रहु हरि नाले ॥ 

हरि नालि रहु तू मंन मेरे दूख सभि विसारणा ॥ 

अंगीकारु ओहु करे तेरा कारज सभि सवारणा ॥ 

सभना गला समरथु सुआमी सो किउ मनहु विसारे ॥ 

कहै नानकु मंन मेरे सदा रहु हरि नाले ॥२॥


साचे साहिबा किआ नाही घरि तेरै ॥ 

घरि त तेरै सभु किछु है जिसु देहि सु पावए ॥ 

सदा सिफति सलाह तेरी नामु मनि वसावए ॥ 

नामु जिन कै मनि वसिआ वाजे सबद घनेरे ॥ 

कहै नानकु सचे साहिब किआ नाही घरि तेरै ॥३॥


साचा नामु मेरा आधारो ॥ 

साचु नामु अधारु मेरा जिनि भुखा सभि गवाईआ ॥ 

करि सांति सुख मनि आइ वसिआ जिनि इछा सभि पुजाईआ ॥ 

सदा कुरबाणु कीता गुरू विटहु जिस दीआ एहि वडिआईआ ॥ 

कहै नानकु सुणहु संतहु सबदि धरहु पिआरो ॥ 

साचा नामु मेरा आधारो ॥४॥


वाजे पंच सबद तितु घरि सभागै ॥ 

घरि सभागै सबद वाजे कला जितु घरि धारीआ ॥ 

पंच दूत तुधु वसि कीते कालु कंटकु मारिआ ॥ 

धुरि करमि पाइआ तुधु जिन कउ सि नामि हरि कै लागे ॥ 

कहै नानकु तह सुखु होआ तितु घरि अनहद वाजे ॥५॥


साची लिवै बिनु देह निमाणी ॥ 

देह निमाणी लिवै बाझहु किआ करे वेचारीआ ॥ 

तुधु बाझु समरथ कोइ नाही क्रिपा करि बनवारीआ ॥ 

एस नउ होरु थाउ नाही सबदि लागि सवारीआ ॥ 

कहै नानकु लिवै बाझहु किआ करे वेचारीआ ॥६॥


आनंदु आनंदु सभु को कहै आनंदु गुरू ते जाणिआ ॥ 

जाणिआ आनंदु सदा गुर ते क्रिपा करे पिआरिआ ॥ 

करि किरपा किलविख कटे गिआन अंजनु सारिआ ॥ 

अंदरहु जिन का मोहु तुटा तिन का सबदु सचै सवारिआ ॥ 

कहै नानकु एहु अनंदु है आनंदु गुर ते जाणिआ ॥७॥


बाबा जिसु तू देहि सोई जनु पावै ॥ 

पावै त सो जनु देहि जिस नो होरि किआ करहि वेचारिआ ॥ 

इकि भरमि भूले फिरहि दह दिसि इकि नामि लागि सवारिआ ॥ 

गुर परसादी मनु भइआ निरमलु जिना भाणा भावए ॥ 

कहै नानकु जिसु देहि पिआरे सोई जनु पावए ॥८॥


आवहु संत पिआरिहो अकथ की करह कहाणी ॥ 

करह कहाणी अकथ केरी कितु दुआरै पाईऐ ॥ 

तनु मनु धनु सभु सउपि गुर कउ हुकमि मंनिऐ पाईऐ ॥ 

हुकमु मंनिहु गुरू केरा गावहु सची बाणी ॥ 

कहै नानकु सुणहु संतहु कथिहु अकथ कहाणी ॥९॥


ए मन चंचला चतुराई किनै न पाइआ ॥ 

चतुराई न पाइआ किनै तू सुणि मंन मेरिआ ॥ 

एह माइआ मोहणी जिनि एतु भरमि भुलाइआ ॥ 

माइआ त मोहणी तिनै कीती जिनि ठगउली पाईआ ॥ 

कुरबाणु कीता तिसै विटहु जिनि मोहु मीठा लाइआ ॥ 

कहै नानकु मन चंचल चतुराई किनै न पाइआ ॥१०॥


ए मन पिआरिआ तू सदा सचु समाले ॥ 

एहु कुट्मबु तू जि देखदा चलै नाही तेरै नाले ॥ 

साथि तेरै चलै नाही तिसु नालि किउ चितु लाईऐ ॥ 

ऐसा कमु मूले न कीचै जितु अंति पछोताईऐ ॥ 

सतिगुरू का उपदेसु सुणि तू होवै तेरै नाले ॥ 

कहै नानकु मन पिआरे तू सदा सचु समाले ॥११॥


अगम अगोचरा तेरा अंतु न पाइआ ॥ 

अंतो न पाइआ किनै तेरा आपणा आपु तू जाणहे ॥ 

जीअ जंत सभि खेलु तेरा किआ को आखि वखाणए ॥ 

आखहि त वेखहि सभु तूहै जिनि जगतु उपाइआ ॥ 

कहै नानकु तू सदा अगमु है तेरा अंतु न पाइआ ॥१२॥


सुरि नर मुनि जन अम्रितु खोजदे सु अम्रितु गुर ते पाइआ ॥ 

पाइआ अम्रितु गुरि क्रिपा कीनी सचा मनि वसाइआ ॥ 

जीअ जंत सभि तुधु उपाए इकि वेखि परसणि आइआ ॥ 

लबु लोभु अहंकारु चूका सतिगुरू भला भाइआ ॥ 

कहै नानकु जिस नो आपि तुठा तिनि अम्रितु गुर ते पाइआ ॥१३॥


भगता की चाल निराली ॥ 

चाला निराली भगताह केरी बिखम मारगि चलणा ॥ 

लबु लोभु अहंकारु तजि त्रिसना बहुतु नाही बोलणा ॥ 

खंनिअहु तिखी वालहु निकी एतु मारगि जाणा ॥ 

गुर परसादी जिनी आपु तजिआ हरि वासना समाणी ॥ 

कहै नानकु चाल भगता जुगहु जुगु निराली ॥१४॥


जिउ तू चलाइहि तिव चलह सुआमी होरु किआ जाणा गुण तेरे ॥ 

जिव तू चलाइहि तिवै चलह जिना मारगि पावहे ॥ 

करि किरपा जिन नामि लाइहि सि हरि हरि सदा धिआवहे ॥ 

जिस नो कथा सुणाइहि आपणी सि गुरदुआरै सुखु पावहे ॥ 

कहै नानकु सचे साहिब जिउ भावै तिवै चलावहे ॥१५॥


एहु सोहिला सबदु सुहावा ॥ 

सबदो सुहावा सदा सोहिला सतिगुरू सुणाइआ ॥ 

एहु तिन कै मंनि वसिआ जिन धुरहु लिखिआ आइआ ॥ 

इकि फिरहि घनेरे करहि गला गली किनै न पाइआ ॥ 

कहै नानकु सबदु सोहिला सतिगुरू सुणाइआ ॥१६॥


पवितु होए से जना जिनी हरि धिआइआ ॥ 

हरि धिआइआ पवितु होए गुरमुखि जिनी धिआइआ ॥ 

पवितु माता पिता कुट्मब सहित सिउ पवितु संगति सबाईआ ॥ 

कहदे पवितु सुणदे पवितु से पवितु जिनी मंनि वसाइआ ॥ 

कहै नानकु से पवितु जिनी गुरमुखि हरि हरि धिआइआ ॥१७॥


करमी सहजु न ऊपजै विणु सहजै सहसा न जाइ ॥ 

नह जाइ सहसा कितै संजमि रहे करम कमाए ॥ 

सहसै जीउ मलीणु है कितु संजमि धोता जाए ॥ 

मंनु धोवहु सबदि लागहु हरि सिउ रहहु चितु लाइ ॥ 

कहै नानकु गुर परसादी सहजु उपजै इहु सहसा इव जाइ ॥१८॥


जीअहु मैले बाहरहु निरमल ॥ 

बाहरहु निरमल जीअहु त मैले तिनी जनमु जूऐ हारिआ ॥ 

एह तिसना वडा रोगु लगा मरणु मनहु विसारिआ ॥ 

वेदा महि नामु उतमु सो सुणहि नाही फिरहि जिउ बेतालिआ ॥ 

कहै नानकु जिन सचु तजिआ कूड़े लागे तिनी जनमु जूऐ हारिआ ॥१९॥


जीअहु निरमल बाहरहु निरमल ॥ 

बाहरहु त निरमल जीअहु निरमल सतिगुर ते करणी कमाणी ॥ 

कूड़ की सोइ पहुचै नाही मनसा सचि समाणी ॥ 

जनमु रतनु जिनी खटिआ भले से वणजारे ॥ 

कहै नानकु जिन मंनु निरमलु सदा रहहि गुर नाले ॥२०॥


जे को सिखु गुरू सेती सनमुखु होवै ॥ 

होवै त सनमुखु सिखु कोई जीअहु रहै गुर नाले ॥ 

गुर के चरन हिरदै धिआए अंतर आतमै समाले ॥ 

आपु छडि सदा रहै परणै गुर बिनु अवरु न जाणै कोए ॥ 

कहै नानकु सुणहु संतहु सो सिखु सनमुखु होए ॥२१॥


जे को गुर ते वेमुखु होवै बिनु सतिगुर मुकति न पावै ॥ 

पावै मुकति न होर थै कोई पुछहु बिबेकीआ जाए ॥ 

अनेक जूनी भरमि आवै विणु सतिगुर मुकति न पाए ॥ 

फिरि मुकति पाए लागि चरणी सतिगुरू सबदु सुणाए ॥ 

कहै नानकु वीचारि देखहु विणु सतिगुर मुकति न पाए ॥२२॥


आवहु सिख सतिगुरू के पिआरिहो गावहु सची बाणी ॥ 

बाणी त गावहु गुरू केरी बाणीआ सिरि बाणी ॥ 

जिन कउ नदरि करमु होवै हिरदै तिना समाणी ॥ 

पीवहु अम्रितु सदा रहहु हरि रंगि जपिहु सारिगपाणी ॥ 

कहै नानकु सदा गावहु एह सची बाणी ॥२३॥


सतिगुरू बिना होर कची है बाणी ॥ 

बाणी त कची सतिगुरू बाझहु होर कची बाणी ॥ 

कहदे कचे सुणदे कचे कचीं आखि वखाणी ॥ 

हरि हरि नित करहि रसना कहिआ कछू न जाणी ॥ 

चितु जिन का हिरि लइआ माइआ बोलनि पए रवाणी ॥ 

कहै नानकु सतिगुरू बाझहु होर कची बाणी ॥२४॥


गुर का सबदु रतंनु है हीरे जितु जड़ाउ ॥ 

सबदु रतनु जितु मंनु लागा एहु होआ समाउ ॥ 

सबद सेती मनु मिलिआ सचै लाइआ भाउ ॥ 

आपे हीरा रतनु आपे जिस नो देइ बुझाइ ॥ 

कहै नानकु सबदु रतनु है हीरा जितु जड़ाउ ॥२५॥


सिव सकति आपि उपाइ कै करता आपे हुकमु वरताए ॥ 

हुकमु वरताए आपि वेखै गुरमुखि किसै बुझाए ॥ 

तोड़े बंधन होवै मुकतु सबदु मंनि वसाए ॥ 

गुरमुखि जिस नो आपि करे सु होवै एकस सिउ लिव लाए ॥ 

कहै नानकु आपि करता आपे हुकमु बुझाए ॥२६॥


सिम्रिति सासत्र पुंन पाप बीचारदे ततै सार न जाणी ॥ 

ततै सार न जाणी गुरू बाझहु ततै सार न जाणी ॥ 

तिही गुणी संसारु भ्रमि सुता सुतिआ रैणि विहाणी ॥ 

गुर किरपा ते से जन जागे जिना हरि मनि वसिआ बोलहि अम्रित बाणी ॥ 

कहै नानकु सो ततु पाए जिस नो अनदिनु हरि लिव लागै जागत रैणि विहाणी ॥२७॥


माता के उदर महि प्रतिपाल करे सो किउ मनहु विसारीऐ ॥ 

मनहु किउ विसारीऐ एवडु दाता जि अगनि महि आहारु पहुचावए ॥ 

ओस नो किहु पोहि न सकी जिस नउ आपणी लिव लावए ॥ 

आपणी लिव आपे लाए गुरमुखि सदा समालीऐ ॥ 

कहै नानकु एवडु दाता सो किउ मनहु विसारीऐ ॥२८॥


जैसी अगनि उदर महि तैसी बाहरि माइआ ॥ 

माइआ अगनि सभ इको जेही करतै खेलु रचाइआ ॥ 

जा तिसु भाणा ता जमिआ परवारि भला भाइआ ॥ 

लिव छुड़की लगी त्रिसना माइआ अमरु वरताइआ ॥ 

एह माइआ जितु हरि विसरै मोहु उपजै भाउ दूजा लाइआ ॥ 

कहै नानकु गुर परसादी जिना लिव लागी तिनी विचे माइआ पाइआ ॥२९॥


हरि आपि अमुलकु है मुलि न पाइआ जाइ ॥ 

मुलि न पाइआ जाइ किसै विटहु रहे लोक विललाइ ॥ 

ऐसा सतिगुरु जे मिलै तिस नो सिरु सउपीऐ विचहु आपु जाइ ॥ 

जिस दा जीउ तिसु मिलि रहै हरि वसै मनि आइ ॥ 

हरि आपि अमुलकु है भाग तिना के नानका जिन हरि पलै पाइ ॥३०॥


हरि रासि मेरी मनु वणजारा ॥ 

हरि रासि मेरी मनु वणजारा सतिगुर ते रासि जाणी ॥ 

हरि हरि नित जपिहु जीअहु लाहा खटिहु दिहाड़ी ॥ 

एहु धनु तिना मिलिआ जिन हरि आपे भाणा ॥ 

कहै नानकु हरि रासि मेरी मनु होआ वणजारा ॥३१॥


ए रसना तू अन रसि राचि रही तेरी पिआस न जाइ ॥ 

पिआस न जाइ होरतु कितै जिचरु हरि रसु पलै न पाइ ॥ 

हरि रसु पाइ पलै पीऐ हरि रसु बहुड़ि न त्रिसना लागै आइ ॥ 

एहु हरि रसु करमी पाईऐ सतिगुरु मिलै जिसु आइ ॥ 

कहै नानकु होरि अन रस सभि वीसरे जा हरि वसै मनि आइ ॥३२॥


ए सरीरा मेरिआ हरि तुम महि जोति रखी ता तू जग महि आइआ ॥ 

हरि जोति रखी तुधु विचि ता तू जग महि आइआ ॥ 

हरि आपे माता आपे पिता जिनि जीउ उपाइ जगतु दिखाइआ ॥ 

गुर परसादी बुझिआ ता चलतु होआ चलतु नदरी आइआ ॥ 

कहै नानकु स्रिसटि का मूलु रचिआ जोति राखी ता तू जग महि आइआ ॥३३॥


मनि चाउ भइआ प्रभ आगमु सुणिआ ॥ 

हरि मंगलु गाउ सखी ग्रिहु मंदरु बणिआ ॥ 

हरि गाउ मंगलु नित सखीए सोगु दूखु न विआपए ॥ 

गुर चरन लागे दिन सभागे आपणा पिरु जापए ॥ 

अनहत बाणी गुर सबदि जाणी हरि नामु हरि रसु भोगो ॥ 

कहै नानकु प्रभु आपि मिलिआ करण कारण जोगो ॥३४॥


ए सरीरा मेरिआ इसु जग महि आइ कै किआ तुधु करम कमाइआ ॥ 

कि करम कमाइआ तुधु सरीरा जा तू जग महि आइआ ॥ 

जिनि हरि तेरा रचनु रचिआ सो हरि मनि न वसाइआ ॥ 

गुर परसादी हरि मंनि वसिआ पूरबि लिखिआ पाइआ ॥ 

कहै नानकु एहु सरीरु परवाणु होआ जिनि सतिगुर सिउ चितु लाइआ ॥३५॥


ए नेत्रहु मेरिहो हरि तुम महि जोति धरी हरि बिनु अवरु न देखहु कोई ॥ 

हरि बिनु अवरु न देखहु कोई नदरी हरि निहालिआ ॥ 

एहु विसु संसारु तुम देखदे एहु हरि का रूपु है हरि रूपु नदरी आइआ ॥ 

गुर परसादी बुझिआ जा वेखा हरि इकु है हरि बिनु अवरु न कोई ॥ 

कहै नानकु एहि नेत्र अंध से सतिगुरि मिलिऐ दिब द्रिसटि होई ॥३६॥


ए स्रवणहु मेरिहो साचै सुनणै नो पठाए ॥ 

साचै सुनणै नो पठाए सरीरि लाए सुणहु सति बाणी ॥ 

जितु सुणी मनु तनु हरिआ होआ रसना रसि समाणी ॥ 

सचु अलख विडाणी ता की गति कही न जाए ॥ 

कहै नानकु अम्रित नामु सुणहु पवित्र होवहु साचै सुनणै नो पठाए ॥३७॥


हरि जीउ गुफा अंदरि रखि कै वाजा पवणु वजाइआ ॥ 

वजाइआ वाजा पउण नउ दुआरे परगटु कीए दसवा गुपतु रखाइआ ॥ 

गुरदुआरै लाइ भावनी इकना दसवा दुआरु दिखाइआ ॥ 

तह अनेक रूप नाउ नव निधि तिस दा अंतु न जाई पाइआ ॥ 

कहै नानकु हरि पिआरै जीउ गुफा अंदरि रखि कै वाजा पवणु वजाइआ ॥३८॥


एहु साचा सोहिला साचै घरि गावहु ॥ 

गावहु त सोहिला घरि साचै जिथै सदा सचु धिआवहे ॥ 

सचो धिआवहि जा तुधु भावहि गुरमुखि जिना बुझावहे ॥ 

इहु सचु सभना का खसमु है जिसु बखसे सो जनु पावहे ॥ 

कहै नानकु सचु सोहिला सचै घरि गावहे ॥३९॥


अनदु सुणहु वडभागीहो सगल मनोरथ पूरे ॥ 

पारब्रहमु प्रभु पाइआ उतरे सगल विसूरे ॥ 

दूख रोग संताप उतरे सुणी सची बाणी ॥ 

संत साजन भए सरसे पूरे गुर ते जाणी ॥ 

सुणते पुनीत कहते पवितु सतिगुरु रहिआ भरपूरे ॥ 

बिनवंति नानकु गुर चरण लागे वाजे अनहद तूरे ॥४०॥१॥


Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *