Shabad Hazare
माझ महला ५ चउपदे घरु १ ॥
मेरा मनु लोचै गुर दरसन ताई ॥
बिलप करे चात्रिक की निआई ॥
त्रिखा न उतरै सांति न आवै बिनु दरसन संत पिआरे जीउ ॥१॥
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हउ घोली जीउ घोलि घुमाई गुर दरसन संत पिआरे जीउ ॥१॥ रहाउ ॥
तेरा मुखु सुहावा जीउ सहज धुनि बाणी ॥
चिरु होआ देखे सारिंगपाणी ॥
धंनु सु देसु जहा तूं वसिआ मेरे सजण मीत मुरारे जीउ ॥२॥
हउ घोली हउ घोलि घुमाई गुर सजण मीत मुरारे जीउ ॥१॥ रहाउ ॥
इक घड़ी न मिलते ता कलिजुगु होता ॥
हुणि कदि मिलीऐ प्रिअ तुधु भगवंता ॥
मोहि रैणि न विहावै नीद न आवै बिनु देखे गुर दरबारे जीउ ॥३॥
हउ घोली जीउ घोलि घुमाई तिसु सचे गुर दरबारे जीउ ॥१॥ रहाउ ॥
भागु होआ गुरि संतु मिलाइआ ॥
प्रभु अबिनासी घर महि पाइआ ॥
सेव करी पलु चसा न विछुड़ा जन नानक दास तुमारे जीउ ॥४॥
हउ घोली जीउ घोलि घुमाई जन नानक दास तुमारे जीउ ॥ रहाउ ॥१॥८॥
धनासरी महला १ घरु १ चउपदे
ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥
जीउ डरतु है आपणा कै सिउ करी पुकार ॥
दूख विसारणु सेविआ सदा सदा दातारु ॥१॥
साहिबु मेरा नीत नवा सदा सदा दातारु ॥१॥ रहाउ ॥
अनदिनु साहिबु सेवीऐ अंति छडाए सोइ ॥
सुणि सुणि मेरी कामणी पारि उतारा होइ ॥२॥
दइआल तेरै नामि तरा ॥
सद कुरबाणै जाउ ॥१॥ रहाउ ॥
सरबं साचा एकु है दूजा नाही कोइ ॥
ता की सेवा सो करे जा कउ नदरि करे ॥३॥
तुधु बाझु पिआरे केव रहा ॥
सा वडिआई देहि जितु नामि तेरे लागि रहां ॥
दूजा नाही कोइ जिसु आगै पिआरे जाइ कहा ॥१॥ रहाउ ॥
सेवी साहिबु आपणा अवरु न जाचंउ कोइ ॥
नानकु ता का दासु है बिंद बिंद चुख चुख होइ ॥४॥
साहिब तेरे नाम विटहु बिंद बिंद चुख चुख होइ ॥१॥ रहाउ ॥४॥१॥
तिलंग महला १ घरु ३
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
इहु तनु माइआ पाहिआ पिआरे लीतड़ा लबि रंगाए ॥
मेरै कंत न भावै चोलड़ा पिआरे किउ धन सेजै जाए ॥१॥
हंउ कुरबानै जाउ मिहरवाना हंउ कुरबानै जाउ ॥
हंउ कुरबानै जाउ तिना कै लैनि जो तेरा नाउ ॥
लैनि जो तेरा नाउ तिना कै हंउ सद कुरबानै जाउ ॥१॥ रहाउ ॥
काइआ रंङणि जे थीऐ पिआरे पाईऐ नाउ मजीठ ॥
रंङण वाला जे रंङै साहिबु ऐसा रंगु न डीठ ॥२॥
जिन के चोले रतड़े पिआरे कंतु तिना कै पासि ॥
धूड़ि तिना की जे मिलै जी कहु नानक की अरदासि ॥३॥
आपे साजे आपे रंगे आपे नदरि करेइ ॥
नानक कामणि कंतै भावै आपे ही रावेइ ॥४॥१॥३॥
तिलंग मः १ ॥
इआनड़ीए मानड़ा काइ करेहि ॥
आपनड़ै घरि हरि रंगो की न माणेहि ॥
सहु नेड़ै धन कमलीए बाहरु किआ ढूढेहि ॥
भै कीआ देहि सलाईआ नैणी भाव का करि सीगारो ॥
ता सोहागणि जाणीऐ लागी जा सहु धरे पिआरो ॥१॥
इआणी बाली किआ करे जा धन कंत न भावै ॥
करण पलाह करे बहुतेरे सा धन महलु न पावै ॥
विणु करमा किछु पाईऐ नाही जे बहुतेरा धावै ॥
लब लोभ अहंकार की माती माइआ माहि समाणी ॥
इनी बाती सहु पाईऐ नाही भई कामणि इआणी ॥२॥
जाइ पुछहु सोहागणी वाहै किनी बाती सहु पाईऐ ॥
जो किछु करे सो भला करि मानीऐ हिकमति हुकमु चुकाईऐ ॥
जा कै प्रेमि पदारथु पाईऐ तउ चरणी चितु लाईऐ ॥
सहु कहै सो कीजै तनु मनो दीजै ऐसा परमलु लाईऐ ॥
एव कहहि सोहागणी भैणे इनी बाती सहु पाईऐ ॥३॥
आपु गवाईऐ ता सहु पाईऐ अउरु कैसी चतुराई ॥
सहु नदरि करि देखै सो दिनु लेखै कामणि नउ निधि पाई ॥
आपणे कंत पिआरी सा सोहागणि नानक सा सभराई ॥
ऐसै रंगि राती सहज की माती अहिनिसि भाइ समाणी ॥
सुंदरि साइ सरूप बिचखणि कहीऐ सा सिआणी ॥४॥२॥४॥
सूही महला १ ॥
कउण तराजी कवणु तुला तेरा कवणु सराफु बुलावा ॥
कउणु गुरू कै पहि दीखिआ लेवा कै पहि मुलु करावा ॥१॥
मेरे लाल जीउ तेरा अंतु न जाणा ॥
तूं जलि थलि महीअलि भरिपुरि लीणा तूं आपे सरब समाणा ॥१॥ रहाउ ॥
मनु ताराजी चितु तुला तेरी सेव सराफु कमावा ॥
घट ही भीतरि सो सहु तोली इन बिधि चितु रहावा ॥२॥
आपे कंडा तोलु तराजी आपे तोलणहारा ॥
आपे देखै आपे बूझै आपे है वणजारा ॥३॥
अंधुला नीच जाति परदेसी खिनु आवै तिलु जावै ॥
ता की संगति नानकु रहदा किउ करि मूड़ा पावै ॥४॥२॥९॥
ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥
रागु बिलावलु महला १ चउपदे घरु १ ॥
तू सुलतानु कहा हउ मीआ तेरी कवन वडाई ॥
जो तू देहि सु कहा सुआमी मै मूरख कहणु न जाई ॥१॥
तेरे गुण गावा देहि बुझाई ॥
जैसे सच महि रहउ रजाई ॥१॥ रहाउ ॥
जो किछु होआ सभु किछु तुझ ते तेरी सभ असनाई ॥
तेरा अंतु न जाणा मेरे साहिब मै अंधुले किआ चतुराई ॥२॥
किआ हउ कथी कथे कथि देखा मै अकथु न कथना जाई ॥
जो तुधु भावै सोई आखा तिलु तेरी वडिआई ॥३॥
एते कूकर हउ बेगाना भउका इसु तन ताई ॥
भगति हीणु नानकु जे होइगा ता खसमै नाउ न जाई ॥४॥१॥
बिलावलु महला १ ॥
मनु मंदरु तनु वेस कलंदरु घट ही तीरथि नावा ॥
एकु सबदु मेरै प्रानि बसतु है बाहुड़ि जनमि न आवा ॥१॥
मनु बेधिआ दइआल सेती मेरी माई ॥
कउणु जाणै पीर पराई ॥
हम नाही चिंत पराई ॥१॥ रहाउ ॥
अगम अगोचर अलख अपारा चिंता करहु हमारी ॥
जलि थलि महीअलि भरिपुरि लीणा घटि घटि जोति तुम्हारी ॥२॥
सिख मति सभ बुधि तुम्हारी मंदिर छावा तेरे ॥
तुझ बिनु अवरु न जाणा मेरे साहिबा गुण गावा नित तेरे ॥३॥
जीअ जंत सभि सरणि तुम्हारी सरब चिंत तुधु पासे ॥
जो तुधु भावै सोई चंगा इक नानक की अरदासे ॥४॥२॥
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