Sodar Sopurakh

सो दरु सो पुरखु (Sodar Sopurakh)

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सो दरु रागु आसा महला १

ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

सो दरु तेरा केहा सो घरु केहा जितु बहि सरब समाले ॥ 

वाजे तेरे नाद अनेक असंखा केते तेरे वावणहारे ॥ 

केते तेरे राग परी सिउ कहीअहि केते तेरे गावणहारे ॥ 

गावनि तुधनो पवणु पाणी बैसंतरु गावै राजा धरमु दुआरे ॥ 

गावनि तुधनो चितु गुपतु लिखि जाणनि लिखि लिखि धरमु बीचारे ॥ 

गावनि तुधनो ईसरु ब्रहमा देवी सोहनि तेरे सदा सवारे ॥ 

गावनि तुधनो इंद्र इंद्रासणि बैठे देवतिआ दरि नाले ॥ 

गावनि तुधनो सिध समाधी अंदरि गावनि तुधनो साध बीचारे ॥ 

गावनि तुधनो जती सती संतोखी गावनि तुधनो वीर करारे ॥ 

गावनि तुधनो पंडित पड़नि रखीसुर जुगु जुगु वेदा नाले ॥ 

गावनि तुधनो मोहणीआ मनु मोहनि सुरगु मछु पइआले ॥ 

गावनि तुधनो रतन उपाए तेरे अठसठि तीरथ नाले ॥ 

गावनि तुधनो जोध महाबल सूरा गावनि तुधनो खाणी चारे ॥ 

गावनि तुधनो खंड मंडल ब्रहमंडा करि करि रखे तेरे धारे ॥ 

सेई तुधनो गावनि जो तुधु भावनि रते तेरे भगत रसाले ॥ 

होरि केते तुधनो गावनि से मै चिति न आवनि नानकु किआ बीचारे ॥ 

सोई सोई सदा सचु साहिबु साचा साची नाई ॥ 

है भी होसी जाइ न जासी रचना जिनि रचाई ॥ 

रंगी रंगी भाती करि करि जिनसी माइआ जिनि उपाई ॥ 

करि करि देखै कीता आपणा जिउ तिस दी वडिआई ॥ 

जो तिसु भावै सोई करसी फिरि हुकमु न करणा जाई ॥ 

सो पातिसाहु साहा पतिसाहिबु नानक रहणु रजाई ॥१॥


आसा महला १ ॥

सुणि वडा आखै सभु कोइ ॥ 

केवडु वडा डीठा होइ ॥ 

कीमति पाइ न कहिआ जाइ ॥ 

कहणै वाले तेरे रहे समाइ ॥१॥


वडे मेरे साहिबा गहिर ग्मभीरा गुणी गहीरा ॥ 

कोइ न जाणै तेरा केता केवडु चीरा ॥१॥ रहाउ ॥


सभि सुरती मिलि सुरति कमाई ॥ 

सभ कीमति मिलि कीमति पाई ॥ 

गिआनी धिआनी गुर गुरहाई ॥ 

कहणु न जाई तेरी तिलु वडिआई ॥२॥


सभि सत सभि तप सभि चंगिआईआ ॥ 

सिधा पुरखा कीआ वडिआईआ ॥ 

तुधु विणु सिधी किनै न पाईआ ॥ 

करमि मिलै नाही ठाकि रहाईआ ॥३॥


आखण वाला किआ वेचारा ॥ 

सिफती भरे तेरे भंडारा ॥ 

जिसु तू देहि तिसै किआ चारा ॥ 

नानक सचु सवारणहारा ॥४॥२॥


आसा महला १ ॥

आखा जीवा विसरै मरि जाउ ॥ 

आखणि अउखा साचा नाउ ॥ 

साचे नाम की लागै भूख ॥ 

उतु भूखै खाइ चलीअहि दूख ॥१॥


सो किउ विसरै मेरी माइ ॥ 

साचा साहिबु साचै नाइ ॥१॥ रहाउ ॥


साचे नाम की तिलु वडिआई ॥ 

आखि थके कीमति नही पाई ॥ 

जे सभि मिलि कै आखण पाहि ॥ 

वडा न होवै घाटि न जाइ ॥२॥


ना ओहु मरै न होवै सोगु ॥ 

देदा रहै न चूकै भोगु ॥ 

गुणु एहो होरु नाही कोइ ॥ 

ना को होआ ना को होइ ॥३॥


जेवडु आपि तेवड तेरी दाति ॥ 

जिनि दिनु करि कै कीती राति ॥ 

खसमु विसारहि ते कमजाति ॥ 

नानक नावै बाझु सनाति ॥४॥३॥


रागु गूजरी महला ४ ॥

हरि के जन सतिगुर सतपुरखा बिनउ करउ गुर पासि ॥ 

हम कीरे किरम सतिगुर सरणाई करि दइआ नामु परगासि ॥१॥


मेरे मीत गुरदेव मो कउ राम नामु परगासि ॥ 

गुरमति नामु मेरा प्रान सखाई हरि कीरति हमरी रहरासि ॥१॥ रहाउ ॥


हरि जन के वड भाग वडेरे जिन हरि हरि सरधा हरि पिआस ॥ 

हरि हरि नामु मिलै त्रिपतासहि मिलि संगति गुण परगासि ॥२॥


जिन हरि हरि हरि रसु नामु न पाइआ ते भागहीण जम पासि ॥ 

जो सतिगुर सरणि संगति नही आए ध्रिगु जीवे ध्रिगु जीवासि ॥३॥


जिन हरि जन सतिगुर संगति पाई तिन धुरि मसतकि लिखिआ लिखासि ॥ 

धनु धंनु सतसंगति जितु हरि रसु पाइआ मिलि जन नानक नामु परगासि ॥४॥४॥


रागु गूजरी महला ५ ॥

काहे रे मन चितवहि उदमु जा आहरि हरि जीउ परिआ ॥ 

सैल पथर महि जंत उपाए ता का रिजकु आगै करि धरिआ ॥१॥


मेरे माधउ जी सतसंगति मिले सु तरिआ ॥ 

गुर परसादि परम पदु पाइआ सूके कासट हरिआ ॥१॥ रहाउ ॥


जननि पिता लोक सुत बनिता कोइ न किस की धरिआ ॥ 

सिरि सिरि रिजकु स्मबाहे ठाकुरु काहे मन भउ करिआ ॥२॥


ऊडे ऊडि आवै सै कोसा तिसु पाछै बचरे छरिआ ॥ 

तिन कवणु खलावै कवणु चुगावै मन महि सिमरनु करिआ ॥३॥


सभि निधान दस असट सिधान ठाकुर कर तल धरिआ ॥ 

जन नानक बलि बलि सद बलि जाईऐ तेरा अंतु न पारावरिआ ॥४॥५॥


रागु आसा महला ४ सो पुरखु

ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

सो पुरखु निरंजनु हरि पुरखु निरंजनु हरि अगमा अगम अपारा ॥ 

सभि धिआवहि सभि धिआवहि तुधु जी हरि सचे सिरजणहारा ॥ 

सभि जीअ तुमारे जी तूं जीआ का दातारा ॥ 

हरि धिआवहु संतहु जी सभि दूख विसारणहारा ॥ 

हरि आपे ठाकुरु हरि आपे सेवकु जी किआ नानक जंत विचारा ॥१॥


तूं घट घट अंतरि सरब निरंतरि जी हरि एको पुरखु समाणा ॥ 

इकि दाते इकि भेखारी जी सभि तेरे चोज विडाणा ॥ 

तूं आपे दाता आपे भुगता जी हउ तुधु बिनु अवरु न जाणा ॥ 

तूं पारब्रहमु बेअंतु बेअंतु जी तेरे किआ गुण आखि वखाणा ॥ 

जो सेवहि जो सेवहि तुधु जी जनु नानकु तिन कुरबाणा ॥२॥


हरि धिआवहि हरि धिआवहि तुधु जी से जन जुग महि सुखवासी ॥ 

से मुकतु से मुकतु भए जिन हरि धिआइआ जी तिन तूटी जम की फासी ॥ 

जिन निरभउ जिन हरि निरभउ धिआइआ जी तिन का भउ सभु गवासी ॥ 

जिन सेविआ जिन सेविआ मेरा हरि जी ते हरि हरि रूपि समासी ॥ 

से धंनु से धंनु जिन हरि धिआइआ जी जनु नानकु तिन बलि जासी ॥३॥


तेरी भगति तेरी भगति भंडार जी भरे बिअंत बेअंता ॥ 

तेरे भगत तेरे भगत सलाहनि तुधु जी हरि अनिक अनेक अनंता ॥ 

तेरी अनिक तेरी अनिक करहि हरि पूजा जी तपु तापहि जपहि बेअंता ॥ 

तेरे अनेक तेरे अनेक पड़हि बहु सिम्रिति सासत जी करि किरिआ खटु करम करंता ॥ 

से भगत से भगत भले जन नानक जी जो भावहि मेरे हरि भगवंता ॥४॥


तूं आदि पुरखु अपर्मपरु करता जी तुधु जेवडु अवरु न कोई ॥ 

तूं जुगु जुगु एको सदा सदा तूं एको जी तूं निहचलु करता सोई ॥ 

तुधु आपे भावै सोई वरतै जी तूं आपे करहि सु होई ॥ 

तुधु आपे स्रिसटि सभ उपाई जी तुधु आपे सिरजि सभ गोई ॥ 

जनु नानकु गुण गावै करते के जी जो सभसै का जाणोई ॥५॥१॥


आसा महला ४ ॥

तूं करता सचिआरु मैडा सांई ॥ 

जो तउ भावै सोई थीसी जो तूं देहि सोई हउ पाई ॥१॥ रहाउ ॥


सभ तेरी तूं सभनी धिआइआ ॥ 

जिस नो क्रिपा करहि तिनि नाम रतनु पाइआ ॥ 

गुरमुखि लाधा मनमुखि गवाइआ ॥ 

तुधु आपि विछोड़िआ आपि मिलाइआ ॥१॥


तूं दरीआउ सभ तुझ ही माहि ॥ 

तुझ बिनु दूजा कोई नाहि ॥ 

जीअ जंत सभि तेरा खेलु ॥ 

विजोगि मिलि विछुड़िआ संजोगी मेलु ॥२॥


जिस नो तू जाणाइहि सोई जनु जाणै ॥ 

हरि गुण सद ही आखि वखाणै ॥ 

जिनि हरि सेविआ तिनि सुखु पाइआ ॥ 

सहजे ही हरि नामि समाइआ ॥३॥


तू आपे करता तेरा कीआ सभु होइ ॥ 

तुधु बिनु दूजा अवरु न कोइ ॥ 

तू करि करि वेखहि जाणहि सोइ ॥ 

जन नानक गुरमुखि परगटु होइ ॥४॥२॥


आसा महला १ ॥

तितु सरवरड़ै भईले निवासा पाणी पावकु तिनहि कीआ ॥ 

पंकजु मोह पगु नही चालै हम देखा तह डूबीअले ॥१॥


मन एकु न चेतसि मूड़ मना ॥ 

हरि बिसरत तेरे गुण गलिआ ॥१॥ रहाउ ॥


ना हउ जती सती नही पड़िआ मूरख मुगधा जनमु भइआ ॥ 

प्रणवति नानक तिन की सरणा जिन तू नाही वीसरिआ ॥२॥३॥


आसा महला ५ ॥

भई परापति मानुख देहुरीआ ॥ 

गोबिंद मिलण की इह तेरी बरीआ ॥ 

अवरि काज तेरै कितै न काम ॥ 

मिलु साधसंगति भजु केवल नाम ॥१॥


सरंजामि लागु भवजल तरन कै ॥ 

जनमु ब्रिथा जात रंगि माइआ कै ॥१॥ रहाउ ॥


जपु तपु संजमु धरमु न कमाइआ ॥ 

सेवा साध न जानिआ हरि राइआ ॥ 

कहु नानक हम नीच करमा ॥ 

सरणि परे की राखहु सरमा ॥२॥४॥

Sodar Sopurakh

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