Aarti Gurbani

आरती गुरबाणी(Aarti Gurbani)

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Aarti Gurbani

धनासरी महला १ आरती

ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

गगन मै थालु रवि चंदु दीपक बने तारिका मंडल जनक मोती ॥ 

धूपु मलआनलो पवणु चवरो करे सगल बनराइ फूलंत जोती ॥१॥


कैसी आरती होइ भव खंडना तेरी आरती ॥ 

अनहता सबद वाजंत भेरी ॥१॥ रहाउ ॥


सहस तव नैन नन नैन है तोहि कउ सहस मूरति नना एक तोही ॥ 

सहस पद बिमल नन एक पद गंध बिनु सहस तव गंध इव चलत मोही ॥२॥


सभ महि जोति जोति है सोइ ॥ 

तिस कै चानणि सभ महि चानणु होइ ॥ 

गुर साखी जोति परगटु होइ ॥ 

जो तिसु भावै सु आरती होइ ॥३॥


हरि चरण कमल मकरंद लोभित मनो अनदिनो मोहि आही पिआसा ॥ 

क्रिपा जलु देहि नानक सारिंग कउ होइ जा ते तेरै नामि वासा ॥४॥१॥७॥९॥


धनासरी भगत रविदास जी की

नामु तेरो आरती मजनु मुरारे ॥ 

हरि के नाम बिनु झूठे सगल पासारे ॥१॥ रहाउ ॥


नामु तेरो आसनो नामु तेरो उरसा नामु तेरा केसरो ले छिटकारे ॥ 

नामु तेरा अ्मभुला नामु तेरो चंदनो घसि जपे नामु ले तुझहि कउ चारे ॥१॥


नामु तेरा दीवा नामु तेरो बाती नामु तेरो तेलु ले माहि पसारे ॥ 

नाम तेरे की जोति लगाई भइओ उजिआरो भवन सगलारे ॥२॥


नामु तेरो तागा नामु फूल माला भार अठारह सगल जूठारे ॥ 

तेरो कीआ तुझहि किआ अरपउ नामु तेरा तुही चवर ढोलारे ॥३॥


दस अठा अठसठे चारे खाणी इहै वरतणि है सगल संसारे ॥ 

कहै रविदासु नामु तेरो आरती सति नामु है हरि भोग तुहारे ॥४॥३॥


स्री सैणु ॥

धूप दीप घ्रित साजि आरती ॥ 

वारने जाउ कमला पती ॥१॥


मंगला हरि मंगला ॥ 

नित मंगलु राजा राम राइ को ॥१॥ रहाउ ॥


ऊतमु दीअरा निरमल बाती ॥ 

तुहीं निरंजनु कमला पाती ॥२॥


रामा भगति रामानंदु जानै ॥ 

पूरन परमानंदु बखानै ॥३॥


मदन मूरति भै तारि गोबिंदे ॥ 

सैनु भणै भजु परमानंदे ॥४॥२॥


प्रभाती ॥

सुंन संधिआ तेरी देव देवाकर अधपति आदि समाई ॥ 

सिध समाधि अंतु नही पाइआ लागि रहे सरनाई ॥१॥


लेहु आरती हो पुरख निरंजन सतिगुर पूजहु भाई ॥ 

ठाढा ब्रहमा निगम बीचारै अलखु न लखिआ जाई ॥१॥ रहाउ ॥


ततु तेलु नामु कीआ बाती दीपकु देह उज्यारा ॥ 

जोति लाइ जगदीस जगाइआ बूझै बूझनहारा ॥२॥


पंचे सबद अनाहद बाजे संगे सारिंगपानी ॥ 

कबीर दास तेरी आरती कीनी निरंकार निरबानी ॥३॥५॥


धंना ॥

गोपाल तेरा आरता ॥ 

जो जन तुमरी भगति करंते तिन के काज सवारता ॥१॥ रहाउ ॥


दालि सीधा मागउ घीउ ॥ 

हमरा खुसी करै नित जीउ ॥ 

पन्हीआ छादनु नीका ॥ 

अनाजु मगउ सत सी का ॥१॥


गऊ भैस मगउ लावेरी ॥ 

इक ताजनि तुरी चंगेरी ॥ 

घर की गीहनि चंगी ॥ 

जनु धंना लेवै मंगी ॥२॥४॥


स्वैया ॥

पाइ गहे जब ते तुमरे तब ते कोऊ आँख तरे नही आनयो ॥ 

राम रहीम पुरान कुरान अनेक कहैं मत एक न मानयो ॥ 

सिंमृति सासत्र बेद सभै बहु भेद कहै हम एक न जानयो ॥ 

स्री असिपान कृपा तुमरी करि मै न कहयो सभ तोहि बखानयो ॥८६३॥


दोहरा ॥

सगल दुआर कउ छाडि कै गहयो तुहारो दुआर ॥ 

बाहि गहे की लाज असि गोबिंद दास तुहार ॥८६४॥


गउड़ी महला ५ ॥

थिरु घरि बैसहु हरि जन पिआरे ॥ 

सतिगुरि तुमरे काज सवारे ॥१॥ रहाउ ॥


दुसट दूत परमेसरि मारे ॥ 

जन की पैज रखी करतारे ॥१॥


बादिसाह साह सभ वसि करि दीने ॥ 

अम्रित नाम महा रस पीने ॥२॥


निरभउ होइ भजहु भगवान ॥ 

साधसंगति मिलि कीनो दानु ॥३॥


सरणि परे प्रभ अंतरजामी ॥ 

नानक ओट पकरी प्रभ सुआमी ॥४॥१०८॥

Aarti Gurbani

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