बाबा दीप सिंह शहीदी दिवस 15 नवंबर को मनाया जाता है । बाबा जी सिख धर्म के सबसे महान योद्धाओं में से एक थे।
बाबा दीप सिंह का बचपन
शहीद बाबा दीप सिंह जी का जन्म 26 जनवरी 1682 को हुआ। इनके पिता का नाम भगत जी था जो कि किसान थे और उनकी माता का नाम ज्योनी जी था। जब यह 12 वर्ष के थे तब अपने माता-पिता के साथ सिख पंथ के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह जी से मिलने आनंदपुर गए।
बाबा जी का मुग़लो के साथ युद्ध
1757 ईस्वी में अहमद शाह अब्दाली ने हरमंदिर साहिब जी को अपवित्र किया और जैसे ही ये खबर बाबा दीप सिंह जी के कानो तक पहुंची, तब बाबा दीप सिंह जी ने दमदमा साहिब में प्रण लेते हुए कहा कि "मैं अब श्री हरमंदिर साहिब जी को मुक्त करवा कर ही दम लूंगा या फिर वहीं पर शहीद हो जाऊंगा"। यह प्रण लेने के बाद बाबा जी सिख योद्धाओं की फौज के साथ युद्ध के मैदान अमृतसर की ओर चल पड़े और युद्ध में रवाना होने से पहले उन्होंने जमीन पर एक लाइन खींची और सभी और सभी लोगों को कहा यह लाइन केवल वो ही व्यक्ति पार करें जो युद्ध के दौरान लड़ने मरने तक को तैयार है।
बाबा दीप सिंह शहीदी की घटना
सिखों के आने की खबर मिलते ही लाहौर के गवर्नर जनरल ने अपनी 20000 लोगों की सेना को युद्ध लड़ने के लिए भेजा। 11 नवंबर 1757 को गोहलवाड गांव के पास दोनों सेनाओं के बीच गंभीर युद्ध हुआ । इस भिड़ंत में सिखों ने मुगलों की फौज को पराजित कर दिया और बाबा दीप सिंह जी की फ़ौज चंबा नामक गांव की तरफ रवाना हो गई जहां अटल खा आगे आया और उसने बाबा दीप सिंह जी पर वार कर दिया,इस वार में बाबा जी का सिर धड़ से अलग हो गया । परंतु फिर भी बाबा जी ने हार नहीं मानी उन्होंने अपने कटे हुए सर को एक हाथ में और तलवार को दूसरे हाथ में उठाकर "वाहेगुरु जी का खालसा वाहेगुरु जी की फतेह का " नारा लगाया और लड़ाई को जारी रखा वे श्री हरमंदिर साहिब की चौखट तक पहुंचे और वहीं पर शहीद हो गए।
बाबा जी का हरमिंदर साहिब जी में अंतिम संस्कार
सिखों ने 1757 ई की दिवाली श्री हरमंदिर साहिब में ही मनाई थी। बाबा दीप सिंह जी का सिर जिस जगह पर गिरा था उसे स्थान को एक पत्थर के द्वारा चिन्हित किया गया है जो कोई भी श्री दरबार साहिब में माथा टेकने के लिए जाते हैं वह इसी स्थान से गुजरते हैं और यह पत्थर उन्हें याद दिलाता है कि श्री हरमंदिर साहिब का मार्ग शहीद बाबा दीप सिंह जी जैसे लोगों के महान बलिदानों के कारण बना है।